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मोक्ष-स्वरुप होते जाते हैं। पाठवें गुणस्थान और नौवें गुणस्थान संबंधी अध्यवसायों में यह विशे. पता है कि पाठवें गुणस्थान वाले समसमयवर्ती जीवों के अध्यवसायों में शुद्धि की तरतमता होती है, इस कारण वे असंख्यात श्रेणियों में विभक्त हो सकते हैं परन्तु नववे गुणस्थान वाले सम-समयवती जीवों के अध्यवसाय एक ही कोटि के होते हैं ।
(१०) सूक्ष्मसाम्पराय-गुणस्थान-पूर्वोक्त इक्कीस प्रकृतियों के अतिरिक्त स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, संज्वलन क्रोध, मान और माया, इन छह प्रकृत्तियों का भी जब उपशम या क्षय हो जाता है तब सूक्ष्म लापराय नामक दसवां गुणस्थान प्राप्त होता है । इस गुणस्थान में मोहनीय कर्म के अट्ठाइस भेदों में से सिर्फ एक संज्कलन लोम शेष रहता है और वह भी सूक्ष्म रूप में ही रह जाता है। कहा भी है:
धुवकोसंमियवत्थं, होदि जहां सुहुमरत्यजुत्तं ।
एवं मुहुद्द कसाओ, मुहुमसरामो ति णादयो । अर्थात्-कुसुमी रंग से रंगे हुए वस्त्र को धो डालने पर जैसे उसमें हल्का-सा रंग रहजाता है इसी प्रकार केवल सूक्ष्म संज्वलन लोभ के रह जाने पर जो जीव की अवस्था होती है उसे सूक्ष्मसापराय गुणस्थान कहते है।
____ इस गुलस्थान में प्राने पर जीव संज्वलन लोभ का उपशय या क्षय करता है और ज्यों ही लोभ का उपशय हुश्रा, त्योंही ग्यारहवें गुणस्थान में पहुँच जाता है। क्षपकजीव लोभ का क्षय करके दसवें गुणस्थान से सीधा बारहवे गुणस्थान में पहुंचता है।
६ ११ ) उपशान्तमोहनीय-गुणस्थान-पूर्वकथनानुसार मोहनीय कर्म की सभी प्रकृतियों का उपशम होने पर जीव की जो अवस्था होती है वह उपशान्त मोहनीय गुणस्थान है। इस गुणस्थान की जघन्य स्थिति एक समय की और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहर्त की है।
ग्यारहवें गुणस्थान में गया हुआ जीव भागे प्रगति नहीं कर पाता। उसे पिछले गुणस्थानों में लौटना पड़ता है। उपशमश्रेणी वाला जीव ही इस गुणस्थान में पहुँचता है। इस श्रेणी के जीवों ने मोह को क्षय नहीं किया था वरन् उसका उपशम किया था। उपशान्त किया हुआ मोह यहां आकर उदय में आता है और उसी समया जीव का अधःपतन हो जाता है।
ग्यारहवें गुणस्थान से पतित होने वाला जीव, जिस क्रम से उपर चदाथा उसी क्रम से गिरता है । ग्यारहवें गुणस्थान से दसवे में आता है, फिर नववे में प्राता है, इस प्रकार कोई-कोई जीव छठे गुणस्थान तक, कोई पांचवें तक, कोई चौथे तक, और कोई पांचवें तक, कोई चौथे तक और कोई दूसरे गुणस्थान में होता हुआ पहले गुणस्थान तक जा पहुँचता है। .. एक बार गिरजाने पर दूसरी बार उपशम श्रेणी के द्वारा जीव ग्यारहवें गुण स्थान तक पहुँच सकता है और फिर उसी प्रकार गिरता भी है। इस प्रकार एक जीव