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मोक्ष स्वरुप उसी प्रकार विनीत पुरुष पुण्यक्रियाओं का पात्र बनता है। . भाष्यः-विनय और विनीत का व्याख्यान करने के बाद यहां विनय का फल । बतलाया गया है।
बुद्धिमान अर्थात् हिताहित के जान ले युक्त पुरुष को विनय का पूर्वोक्ह स्वरूप भलीभांति समझकर अपने स्वभाव में विनय-शीलता लानी चाहिए । विनयशील पुरुष की संसार में सुकीर्ति फैलती है और वह पुण्यानुष्ठानों का इसी प्रकार भाजन बन जाता है जिस प्रकार पृथिवी प्राणियों का आधार होती हैं।।
यहां विनीतं पुरुष को पृथिवी की उपमा देकर यह सूचित किया गया है कि जैसे पृथ्वी प्राणियों द्वारा रौंदी जाती है, कुचली जाती हैं, फिर भी वह उनके लिए आधारसूत है और कभी कुपित नहीं होती, इसी प्रकार विनीत पुरुष प्रतिकूल व्यव. हार होने पर भी कभी कुपित न हो और निरन्तर शान्ति धारण करे । मूलः स देवगंधव्य मणुस्सपूइए, .
चइत्त देहं मलएंक पुवयं । सिद्धे वा हवइ सासए,
देवे वा अप्पर महिड्ढिए ॥१६॥ छायाः-स देव गन्धर्वमनुष्य पूजितः, त्यस्वा दे मलपङ्क पूर्वकम् ।
सिद्धौ भवति शाश्वतः, देवो वापि महर्द्धिकः ।। १६ ॥ शब्दार्थः-विनय से सम्पन्न पुरुष देवों, गंधर्वो और मनुष्यों से पूजित होता है और इस रुधिर एवं वीर्य आदि अशुभ पदार्थों से बने हुए शरीर को त्याग कर शाश्वत सिद्धि प्राप्त करता है । अथवा महान् ऋद्धि वाला देव होता है। .
भाष्य--विनय का अन्तिम फल क्या है, इस प्रश्न का यहां स्पष्टीकरण किया गया है। जो पूर्ण रूप से विनय युक्त होता है वह इस लोक में देवों, गंधों और मनुष्यों द्वारा पूजा जाता है तथा जीवन का अन्त आने पर शाश्वत-नन्त अक्षय-सिद्धि प्राप्त करता है।
कदाचित कम शेष रह जाते हैं तो वद् महान् ऋद्धि का धारक देव होता है। पहले देवों का वर्णन किया जा चुका है। नीचे-नीचे देवलोकों की अपेक्षा ऊपर-ऊपर के देवों की स्थिति, सुन, शुति, लेश्या, प्रधान एवं ऋद्धि अधिकाधिक होती है । श्रनुत्तर विमानों के देवों की ऋद्धि सर्वोत्कृष्ट होती है। ऐसे विनय सम्पन्न, अल्पक महापुरुप शनुत्तर विमानों में उत्पन्न होते हैं।
देवलोक के परमोत्कृष्ट सुखों का उपभोग करने के पश्चात् देव का वह जीव फिर मनुष्य योनि में अक्तीर्ण होता है और फिर विनय का विशिष्ट अाराधन करके,