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________________ - - - सत्तरहवां अध्याय [ ६४६ ] (६) किंपुरुष श्वेत चम्पकवृक्ष (७) महोरग कृष्ण नागवृक्ष (८) गन्धर्व तिन्दुकवृक्ष भानपन्नी श्रादि वाणव्यन्तरों के शरीर का वर्ण और मुकुट का चिह्न क्रमशः पूर्वोक्त कोष्टक के अनुसार ही समझना चाहिए। मूलः-चदा सूरा य नक्खत्ता, गहा तारागणा तहा। ठिया विचारिणो चेव, पंचहा जोइसा लया ॥ १८॥ छायाः-चन्द्राः सूर्याश्च नक्षत्राणि, गृहास्तारागणास्तथा। स्थिरा विचारिणश्चैव, पञ्चधा ज्योतिशलयः ।। शब्दार्थः-ज्योतिषी देव पांच प्रकार के हैं-(१) चन्द्र (२) सूर्य (३) नक्षत्र (४) ग्रह और (५) तारगण । यह स्थिर और चर के भेद से दो-दो प्रकार के हैं। ___ भाष्य-व्यन्तर देवों का कथन करने के पश्चात् क्रमप्राप्त ज्योतिषी देवों का वर्णन यहां किया गया है। ज्योतिषी देव पांच प्रकार के है--12] चन्द्र [२] सूर्य [३] नक्षत्र [४] गृह और तारागण । इनके चर और अचर के भेद से दो-दो प्रकार होते हैं। अदाई द्वीप में सूर्य प्रादि गतिमान होने के कारण चर हैं और बाहर स्थितिशील होने के कारण श्रचर है। समस्त ज्योतिपी देवों का समूह ज्योतिषचक्र कहलाता है। ज्योतिपचक्र, मेरु पर्वत के निकट समतल भूमि में सात सौ नव्वे (७६० ) योजन की उंचाई से नौ सौ योजन की उँचाई तक अर्थात् एक सौ दस योजन में फैला हुआ है । सात सौ नव्वे योजन की उंचाई पर तारा मंडल है । तारों के विमान आधा कोस के लम्बे-चौड़े और पाव कोस ऊंचे हैं। पांचों वर्ण के हैं। तारामण्डल से दस योजन की ऊंचाई पर एक योजन के ६ भागों में से ४८ भाग लम्बा-चौड़ा और २४ भाग ऊँचा, अंक रत्न का सूर्य का विमान है। सूर्य के विमान से अस्सी योजन ऊपर एक योजन के ६१ भागों में से ५६ भाग लम्बा-चौड़ा और २८ भाग जितना ऊँचा, स्फटिक रत्न का चन्द्रमा का विमान है । चन्द्रमा के विमान से चार योजन की ऊँचाई पर नक्षत्र माला है। नक्षत्रों के विमान पांचों वर्ण के रत्नमय है। वे सब एक-एक कोस लम्बे-चौड़े और श्राधा कोस ऊँचे है । नक्षत्र माला से चार योजन ऊपर ग्रह माला है। ग्रहों के विमान भी पांचों वणों के और दो कोस लम्बे-चौड़े तथा एक कोस ऊँचे हैं । प्रहमाला से चार योजन की ऊँचाई पर हरित रत्नमय बुध ग्रह का तारा है । इससे तीन योजन ऊपर स्फटिक रत्न का शुक्र का तारा है और शुक्र से तीन योजन ऊपर पीत रत्नमय वृहस्पति का तारा है। ब्रहस्पति से तीन योजन ऊपर रा वर्ण रत्नमय मंगल तारा और उससे भी तीन योजन ऊँचा जाम्बूनद वर्णमय शनिग्रह का तारा है।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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