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________________ • ` * ॐ नमः सिद्धेश्य नियन्थ-प्रवचन्ह ॥ सत्रहवां अध्याय ।। * *Cato*नरक-स्वर्ग निरूपण श्री भगवान्-उवाचमूलः-नेरड्या सत्तविहा, पुढवी सतसू भवे । रयणाभा सक्कराभा, बालुयाभा य ाहिया ॥ १ ॥ पंकामा धूमाभा, तमा तमतमा तहा। ' इय नेरइशा एए, सत्तहा परिकितिया ॥२॥ - छायाः-नैरायेकाः सप्तंविधाः, पृथ्वीषु सप्तसु भवेयुः। रत्नाभा शर्कराभा, वालुकामा च पाख्याता ॥१॥ पसाभा धूमाभा, तमः तमस्तसः तथा। इति नैरयिका एते, सप्तधा परिकीर्तिताः॥२॥ - शब्दार्थ:-हे इन्द्रभूति ! सात पृथ्वियों में रहने के कारण नरक सात प्रकार के कहे गये हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं। रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा और तमतमभा । भाज्या-सोलहवें अध्याय में आवश्यक कृत्यों का वर्णन किया गया है । जो विवेकी पुरुष श्रावश्यक क्रियाओं का अनुष्ठान करते हैं उन्हें इस पंचम काल में भी स्वर्ग की प्राप्ति होती है। और जो आवश्यक क्रियाओं में निरादर की बुद्धि रखते हुए पाप कार्यों में पास रहते हैं, हिसा आदि घोर एवं क्रूरतापूर्ण कार्य करते हैं, उन्हें नरक को अतिथि बनना पड़ता है। अतः आवश्यक क्रियाओं के निरूपण के पश्चात् नरक और स्वर्ग का निरूपण किया गया है। नरक का स्वरूप स्पष्ट करने के लिए लोक का वर्णन करना आवश्यक है, अतएव संक्षेप में यहां लोक का स्वरूप लिया जाता है । अनन्त और असीम प्राकाश के जितने भाग में जीव, पुदगल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय श्रादि द्रव्य पाये जाते हैं, उस भाग को लोक कहते हैं। लोक को तीन प्रधान विभागों में विभक्त किया गया है-अर्ध्व लोक, मध्य लोक और अधो-लोक। मेरु पवर्त के समतल भूमि माग से नौ सौ योजन ऊपर ज्योतिष चक्र के ऊपर
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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