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________________ । ६० । श्रावश्यक कृत्य इन्द्रियों के विषयों में श्रासक्त बन कर शिक्षा ग्रहण से वंचित रह जायगा। इसी प्रकार दूसरे के मर्म को चोट पहुंचाने वाली बात कहना, या किसी की गुप्त वात प्रकाश में लाना, सदाचार से सर्वथा शून्य होना, सदाचार में दोष लगाना, अतीव लोलुपता का होना, क्रोधशील होना धीर असत्यमय व्यवहार करना, यह सब दोष जिसने जितनी मात्रा में त्याग दिये हैं वह उतनी ही मात्रा में शिक्षा के योग्य बनता है। अतएव शिष्य को इन पाठ गुणों का धारण-पालन करके शिक्षा ग्रहण करना चाहिए। मूलः-जे लक्खणं सुविण पडंजमाणे, निमित्तकोऊहलसंपगाढ़े । कुहेड विज्जासवदारजीवी, न गच्छइ सरणं तम्मि काले ॥ ११ ॥ .. छायाः-यो लक्षणं स्वप्नं प्रयुन्जानः, निमिस कौतूहलसम्प्रगाढः । कुहेटकविद्यास्रवद्वारजीवी, न गच्छति शरणं तस्मिन् काले ॥ १५ ॥ शब्दार्थः--जो साधु होकर भी स्त्री-पुरुष के हाथ की रेखाएँ देख कर उनका फल बतलाता है, स्वप्न का फलादेश बताने का प्रयोग करता है, भावी फल बताने में, कौतूहल करने में तथा पुत्रोत्पत्ति के साधन बताने में आसक्त रहता है, मंत्र, तंत्र, विद्या रूप आसव के द्वारा जीवन निर्वाह करता है, वह कर्मों का उदय आने पर किसी का भी शरण नहीं पाता। भाध्या-साधु की श्रात्मसाधना का पथ अत्यन्त दुर्गम है । जरा-सी असावधानी होते ही पथ से विचलित हो जाना पड़ता है । एकाग्र भाव से, तल्लीनतापूर्वक साधना करने वाला मुमुच ही अपने ध्येय में सफलता प्राप्त करता है । जो पुरुष मानसिक चंचलता के कारण या कौतूहल के वश होकर अपने प्रधान साध्य विन्दु से हट कर दूसरी ओर मुड़ जाता है और संसार को एक बार त्याग फिर संसार की ओर उन्मुख हो जाता है, ग्रहण की हुई निवृत्ति से च्युत होकर पुनः प्रवृत्ति रूप प्रपञ्च में पड़ जाता है, वह 'इतो भ्रष्टस्ततो भ्रष्टः' होकर इस लोकं से भी जाता है और परलोक से भी जाता हैं। __ सांसारिक प्रपञ्चों में पड़ने से, मुक्ति की साधना में व्याघात हुए बिना नहीं रहता। इसी कारण जिनागम में मुनियों के ऐसें प्राचार का प्रतिपादन किया गया है है कि वे संसार व्यवहार सम्बन्धी किसी विषय से सस्पर्क न रख कर एकान्त आत्मसाधना में ही तन्मय रहें। ___ सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार स्त्री-पुरुष श्रादि के हाथ की रेखाएं देखकर उनके फल का प्रतिपादन करना, स्वप्न शास्त्र के अनुसार स्वप्न का फलाफल यतलाना,
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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