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________________ * ॐ नमः सिद्धेश्य * नियन्थ-प्रवचन ॥ सोलहवां अध्याय ॥ -~* *LD*bs -- आवश्यक कृत्य - श्री भगवान्-उवाचमूलः-समरेसु अंगारेसु, संधीसु य महापहे । एगो एगिथिए सद्धिं, णेव चिट्टे ण संलवे ॥१॥ छाया:-समरे पु अगारे पु, सन्धिपु च महापथे। एक एकस्त्रिया साध, नैव तिष्ठेन्न सं लपेत् ॥१॥ शब्दार्थ:-हे गौतम ! लुहार की शाला में, मकान के खंडहरों में, दो मकानों के वीच में और महापथ में, अकेला पुरुष अकेली स्त्री के साथ न खड़ा रहे, न बातचीत करे। भाष्यः-पन्द्रहवें अध्ययन में मनोनिग्रह का वर्णन किया गया। मनोनिग्रह के लिए अनेक बातों की आवश्यकता होती है, जिनका ध्यान रखने और पालन करने से मन पर काबू किया जा सकता है। अतएव यहां, इस अध्ययन में उन बातों का निरूपण किया जाता है। संसार में सर्वाधिक प्रबल श्राव.र्षण पुरुष के लिए स्त्री है और स्त्री के लिए पुरुष है। जो महासत्व व्यक्ति इस अाकर्षण पर विजय पा लेते हैं उन्हें अन्य प्रलोभनों पर सहज ही विजय प्राप्त हो जाती है । शतपंच शास्त्रकार ने सर्व प्रथम इस श्राफर्पण से बचने का उपाय प्रदर्शित किया है। . मुल में जिन स्थानों का कथन किया गया है, वे उपलक्षण मात्र हैं । लुहार की शाला, खंडहर, मकानों की संधि और महापथ में अकेले पुरुप को अकेली स्त्री के साथ न खड़ा होना चाहिए और न वार्तालाप करना चाहिए । इस कथन से उक्त स्थानों के अतिरिक्त अन्य समस्त स्थानों का ग्रहण करना चाहिए। अर्थात किसी भी स्थान पर अकेला पुरुष अकेली स्त्री के साथ न खड़ा रहे और न बातचीत करे। इस कथन से अदेली स्त्री का अकेले पुरुष के साथ खड़े होने या वार्तालाप करने का निषेध स्वतः सिद्ध हो जाता है। अतएव फाम वासना से बचे रहने के लिए स्त्री-पुरुष की एकत्र स्थिति और वार्तालाप का त्याग आवश्यक हैं । जो महा-पुरुष काम वासना से मुक्त हो जाते हैं
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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