________________
A
P
PLINICAletinirevNEGARLABAntamandir
mantrasite
पन्द्रहवां अध्याय
सोलह पांखुड़ी वाले नाभि-कमल में, प्रत्येक पांखुड़ी पर स्वरमाला-अ, श्रा, बगैरह--भ्रमण करती हुई विचारनी चाहिए । फिर हृदय में चौबीस पांखुड़ी के बीज कोश वाले कमल की कल्पना करके, उसमें क्रमशः पचीस वर्षों का चिन्तन करना चाहिए । फिर पाठ पांखुड़ी वाले मुखकमल की कल्पना करके उसमें स से लेकर ह 'अक्षर सक आठ वर्षों की कल्पना करना चाहिए। .
अथवा मंजराज' है ' का ध्यान करना चाहिए । यह मंच साक्षात परमात्मा और चौवीस तीर्थंकरों का स्मरण कराने वाला है।
पहले इसे दोनों भौंहों के मध्य में चमकता हुश्रा जमा कर देख्ने, फिर विचारे कि वह मुख में प्रवेश करके अमृत करा रहा है । फिर नेनों की पलकों को छूता हुश्रा मस्तक के केशों पर चमकता हुआ, फिर चंद्रमा तथा सूर्य के लिमानों का स्पर्श करता हुश्रा, ऊपर स्वर्ग प्रांदि को लांघता हुश्रा मोक्ष में पहुंच गया है । इस प्रकार मरण करते हुए मंशराज का ध्यान करे।
अथवा प्रणव मंत्र ॐ का ध्यान करना चाहिए । उसकी विधि इस प्रकार हैहृदय में सफेद रंग का कमल है । उसके मध्य में 'ॐ' चन्द्रमा के समान चमक रहा है। इल कमल के पाठ पत्तों पर-तीन पर सोलह स्वर, पांच पर पक्षीस व्यंजन लिखे हुए हैं और ये सब चसक रहे हैं । इस प्रकार अक्षरों से वेष्टित ॐकार का ध्यान करना चाहिए । फिर इस चसकते हुए ॐ को नीचे के स्थानों पर भी विराजमान 'करके ध्यान करना चाहिए।
अथधा-नाभिकंद के नीचे आठ पौखुड़ी के कमल की कल्पना करना चाहिए । उसमें सोलह स्वरों रूपी सोलह केसर-तंतुओं की कल्पना करना चाहिए । उसकी प्रत्येक पांखुड़ी में अक्षरों के आठ वर्गों में से एक-एक वर्म स्थापित करना चाहिए। उन पांखुड़ियों के अन्तराल में सिद्धस्तुति अर्थात् होकार की स्थापना करनी चाहिए
और पांखुड़ियों के अग्रभाग से 'ॐ ह्रीं स्थापना करना चाहिए । तदनन्तर उस 'कमल के बीच में 'आई' शब्द को स्थापित करना चाहिए । यह अहे शब्द पहले प्राणवायु के साथ हस्व उच्चारण वाला होकर फिर दीर्घ उच्चारण वाला होला है, इसके बाद उसले भी दीर्घ-प्लुत-उचारण वाला होकर-फिर सूक्ष्म होताहोता अत्यन्त सूक्ष्म होकर, नाभिकंद एवं हदय घंटिका को भेदता हुमा, मध्य मार्ग से जा रहा है, इस प्रकार विचार करना चाहिए। इसके बाद उस नाद-बिन्दु से तप्त हुई कला में से करते हुए दूध के समान स्वच्छ अमृत में शात्मा को अवगाहन करते चिन्तन करना चाहिए । तदनन्तर अमृत के लरोवर में उगे हुए सोलह पांखुड़ीवाले कमल में अपने आत्मा को स्थापित करके, उन पांखुट्टियों का चिन्तन करना चाहिए। फिर तेजस्वी स्फटिक के घरों में ले साले जाने वाले स्वच्छ दूध के लमान सफेद 'अमृत से आत्मा को देर तक अपमान करते हुए चिन्तन करना चाहिए । फिर इस मंत्र के वाच्य भईन्त परमेष्ठी का सस्तक में विचार करना चाहिए । तदनन्तर ध्यान के आवेश में ' सोऽहं ' का बार-बार उच्चारण करके एरमात्मा के साथ अपने प्रात्मा