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________________ - - पन्द्रहवां अध्याय (२) पिण्डस्थध्यान-धर्मध्यान क यह चार भेद ध्येय अनुसार किये गये हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर । पिण्ड (शरीर में स्थित (आत्मा) का ध्यान करना पिण्डस्थ ध्यान है। सप्त धातु रहित, पूणे चन्द्रमा क समान निर्मल कान्ति वाल, सर्वज्ञ भगवान् के समान शुद्ध श्रात्मा का इस ध्यान में चिन्तन किया जाता है। प्रात्मा शरीर के भीतर पुरुष की प्राकृति वाला होकर सिंहासन के ऊपर विराजमान है। वह अपनी विभूतियों से सुशोभित है । उसके लमस्त कर्मों का नाश हो गया है । वह कल्याणकारी महिमा से युक्त है, ऐसा ध्यान करना चाहिए। इसके अथवा इसी प्रकार के अन्य शरीरस्थ ध्येय के चिन्तन करने से योगी के शरीर पर मलीन विद्याएँ अथवा मंत्र तानक भी प्रभाव नहीं डाल सकते । भूत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी या क्षुद्र योगिनी उस योगी के पास भी नहीं फटकं सकते। उसका आत्मा इतना तेजस्वी बन जाता है कि भूत, पिशाच आदि उसे सहन करने में असमर्थ होते हैं। उसके तेज से अभिभूत होकर मारने की इच्छा से आये हुए मदोन्मत्त हाथी, दुष्ट सिंह और विषधर लोप भी स्तभित हो जाते हैं। . इस ध्यान में पांव धारणाओं का चिन्तन किया जाता है: (१) पार्थिवी धारणा-मध्यलोक को क्षीर सागर के समान निर्मल जल से परिपूर्ण चिन्तन करे । उसके बीचोंबीच जम्बूद्वीप के समान एक लाख योजन विस्तार घाले, एक हजार पत्तों बाले, तपाये हुए सुवर्ण के समान चमकते हुए कमल का विचार करना चाहिए । उस कमल के बीच में कार्णका के समान सुवर्ण के पीले रंग का सुमेरुपर्वत चिन्तन करना चाहिए। उसके ऊपर पाण्डुक वन में,पाण्डुक शिलापर स्फटिक के सफेद सिंहासन की कल्पना करना चाहिए । तदनन्तर उस सिंहासनपर अपने विराजमान होने की चिन्तना करना चाहिए । विचार करना चाहिए कि मैं कर्मों को भस्म कर डालने के लिए और अपने प्रात्मा को प्रकाशमय निष्कलंक बनाने के हेतु बैठा हुआ हूं। बारम्बार इस तरह चिन्तन करना पार्थिवी धारणा है। (२) श्राग्रेयी धारणा-तत्पश्चात् वहीं सुमेरु पर विराजमान वह ध्यानी अपनी नाभि के भीतर के स्थान में, हृदय की और ऊँवे उठे हुए और फैले हुए सोलह पत्तों वाले सफेद रंग के कमल का विचार करे । उस कमल के प्रत्येक पत्ते पर पाले रंग के सोल स्वर लिखे हुए हों। जैसे--अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ.ऋ.ल. लु, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः। इस कमल के मध्य में सफेद रंग की जो कर्णिका है उस पर पीले रंग का 'ई' अक्षर लिखा हुआ सोचना चाहिए। दूसरा कमल इस कमल के ठीक ऊपर, नीचे की ओर मुख किये हुए-आंधा, श्राठ पत्तों वाला फैला हुआ चिन्तन करना चाहिए। यह कमल कुछ मटिया रंग का सोचे । इसके प्रत्येक पत्ते पर काले रंग के लिखे हुए पाठ कर्मों का ध्यान करना चाहिए। तत्पश्चात् नाभि के कमल के बीच में लिखे हुए है' अक्षर के रेक से निकलने हुए धुएँ की कल्पना करना चाहिए । फिर अग्नि की ज्वाला का निकलना विवार
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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