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________________ [ ४ ] पट् द्रव्य निरूपण · 5 ( क ) अनुभव समस्त प्रमाणों में मुख्य प्रमाण है । उसके आधार पर जो. निर्णय किया जाता है वह सर्वथा असंदिग्ध होता है इस प्रकार का अनुभव शरीर में नहीं किन्तु उस से भव प्रमाण से श्रात्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है । मैं सुखी हूं, मैं दुःखी हूं भिन्न होता है श्रतए इस अनु. 1 ( ख ) जिन महापुरुषों ने तपश्चरण आदि के द्वारा कैवल्य प्राप्त किया है, जो सर्वज्ञ हो चुके हैं उन्हें प्रत्यक्ष से आत्मा की प्रतीति होती है । उनकी प्रतीति के आधार पर भी हम आत्मा का अस्तित्व स्वीकार कर सकते हैं, क्यों कि वह भ्रान्त है । ( ग ) किसी भी वस्तु का अस्तित्व उसके असाधारण गुणों के कारण सिद्ध होता है । एक वस्तु से दूसरी वस्तु को भिन्न सिद्ध करने का भी एक मात्र उपाय असाधारण गुण ही है। आग से जल को पृथक् मानने का कारण यही है कि एक में उष्णता है और दूसरे में शीतलता । यह गुण दोनों के असाधारण हैं अतः श्रग्नि और जल को एक नहीं माना जा सकता । श्रात्मा में चैतन्य नामक ऐसा असाधारण गुण है जो किसी भी अन्य वस्तु में नहीं पाया जाता, अतएव श्रात्मा समस्त वस्तुओं से भिन्न है । (घ) प्रत्येक इन्द्रिय अपने-अपने विषय को जानती है। प्रांख से रूप का, जिह्वा से रल का, घ्राण से गंध का और श्रोत्र से शब्द का ज्ञान होता है । एक इन्द्रिय का दूसरी इन्द्रिय के विषय से कोई सरोकार नहीं है । ऐसी अवस्था में अगर इन्द्रियों को ही ज्ञाता माना जाय और उनसे भिन्न श्रात्मा स्वीकार न किया जाय तो सब इन्द्रियों के विषयों का जोड़ रूप ज्ञान कभी नहीं हो सकता । तात्पर्य यह है कि 'मैंने रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द को जाना' इस प्रकार का संकलना रूप ज्ञान कदापि नहीं हो सकेगा । किन्तु जब हम पापड़ खाते हैं तब स्पर्श का, रल का, गंध का, रूप का और चर्र चर्र शब्द का ज्ञान हमें होता है और हम यह भी जानते हैं कि 'इन पांचों विषयों का मुझे ज्ञान हो रहा है' श्रतएव इंद्रियों के विषयों को जोड़ रूप में जानने वाला इन्द्रियों से भिन्न कोई पदार्थ अवश्य मानना चाहिए और वही पदार्थ आत्मा है । (इ) श्रात्मा ही पदार्थों को जानता है, इन्द्रियाँ नहीं, क्योंकि इन्द्रियों के नाह हो जाने पर भी इन्द्रिय द्वारा जाने हुए पदार्थ का स्मरण होता है । श्रख से श्राज किसी वस्तु को देखा। संयोगवश कल आंख फूटगई । तब क्या प्रांख से देखे हुए पदार्थ का स्मरण नहीं होता ? अवश्य होता है। इससे भली भांति सिद्ध है कि इन्द्रियों के अभाव में भी जानने वाला कोई पदार्थ है और वही पदार्थ आत्मा 1 ' एगे श्राया " अस्थि मे श्राया उववाइए ' इत्यादि श्रागम प्रमाण से भी श्रात्मा का अस्तित्व सिद्ध होता हैं । नास्तिक चार्वाकों का कथन हैं किः - सूयगडांग ! ( ब ) एए पंच महसूया, तेव्भो एगोति श्रहिया । ग्रह तो तिखासेणं, विणासो होई देहिणो ॥
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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