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तेरहवां अध्याय नास्तिकता से प्रेरित होकर मनुष्य क्या करता है, इसका वर्णन आगे किया जाता है । मूलः-तत्रो से दंडं समारभइ, तसेसु थावरेसु य ।
अट्ठाए व अणट्ठाए, भूयग्गामं विहिसइ ॥ १७ ॥ छाया:-ततः स दण्डं समारभते, त्रसेषु स्थावपु च ।
- अर्थाय अनोय, भूतग्राम विहिनस्ति ॥ १७ ॥ शब्दार्थ:--परलोक संबंधी असंभावना का विचार करके वह नास्तिक त्रस और । स्थावर जीवों के विषय में, प्रयोजन से अथवा बिना प्रयोजन के ही, दंड का समार करता है, और प्राणियों के समूह का वध करता है।
भाष्यः--परलोक के विषय में अविश्वास करने का तात्कालिक फल क्या होता है; यह बात शास्त्रकार यहां प्रतिपादन करते हैं।
परलोक संबंधी अश्रद्धा करने के पश्चात् नास्तिक पाप-पुण्य के विचार से जब निरपेक्ष हो जाता है तब वह त्रस जीवों की और स्थावर जीवों की हिंसा करने लगता है। सार्थक तथा निरर्थक दोनों प्रकार की हिंसा द्वारा वह अनेक प्राणियों का संहार करता है। यह परलोक संबधी अश्रद्धा का पहला फल है। जो लोग परलोक में विश्वास नहीं करते, उनका मन निरंकुश हो जाता है और वे निर्भय निस्संकोच होकर पाप में प्रवृत्त हो जाते हैं ।
यहां यह अाशंका की जा सकती है कि प्रत्येक गृहस्थ हिंसा करता है। हिंसा किये बिना संसार-व्यवहार का निर्वाह होना असंभव है । परलोक में श्रद्धा रखने . वाला, धर्मप्रिय श्रावक भी हिंसा से पूर्णरूपेण नहीं बच पाता। फिर हिंसा को नास्ति-. कता का परिणाम क्यों कहा गया है ? इस संबंध में अनेक बातें कही जा सकती हैं। . . वे इस प्रकार हैं:
(१) धर्मप्रेमी श्रास्तिक गृहस्थ यदि श्रावक के व्रतों का ग्रहण नहीं करता--- सिर्फ सम्यग्दृष्टि होता है तो.भी वह हिंसा को पाप ही समझता है। सम्यग्दृष्टि जीव हिंसा रूप पाप को नास्तिक की तरह अ-पाप नहीं समझता और इस कारण अगर वह पाप में प्रवृत्ति करता है तो भी पाप से भयभीत रहता है, अपने कृत्य को निन्दनीय समझता है । इस प्रकार उसकी श्रद्धा में अहिंसा विद्यमान रहती है। , नास्तिक के श्रद्धान और आचरण दोनों की हिंसा होती है।
(२) देशवती श्रावक त्रस जीवों की संकल्प पूर्वक हिंसा नहीं करता और स्था- .. चर जीवों की निरर्थक हिंसा से भी वचता है । नास्तिक त्रस और स्थावर की सार्थक तथा निरर्थक दोनों प्रकार की हिंसा करता है । इसी कारण सूत्रकार ने 'तसेल थाव-. रेसुय' तथा 'अट्टाए व भणडाए' पदों का प्रयोग किया है। . : १३.) तीसरी बात यह है कि सम्यग्दृष्टि की हिंसा लाचारी से प्रेरित होती है और वह उन परिणाम द्वारा नहीं की जाती । नास्तिक-मिथ्यादृष्टि की हिंसा व्यसन