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तेरहवां अध्याय
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पोतियों की माला भी फाँसी का फंदा बन जाती है । अपरिमित धन से परिपूर्ण कोट मिट्टी के ढेर की भाँति वृथा हो जाता है ।
कहा भी है-
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अक्षय धन-परिपूर्ण खजाने, शरण जीव को होते, तो अनादि के धनी सभी, इस पृथ्वी पर ही होते । पर न कारगर धन होता है, बंधु ! मृत्यु की वेला, राजपाट सब छोड़ चला जाता है जीव अकेली ॥
मृत्यु से रक्षा करने में समर्थ होता तो धनी मनुष्य कभी न मरते । दे 'अपने धन से या तो नुतन जीवन खरीद लेते या मृत्यु को टाल देते । पर संसार में ऐसा देखा नहीं जाता । छानादिकाल से लेकर अब तक असंख्य षट् खंड के अधिपति और चौदह दिव्य रत्नों एवं नव निधियों के स्वामी चक्रवर्त्ती तथा अन्यान्य अपरिमित धन से सम्पन्न पुरुष इस भूतल पर अवतीर्ण हुए हैं, पर उनमें से द्याज एक ' भी कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता ! वे सब आज कहां हैं ? धन ने उनका त्राण नहीं किया । उनकी असीम सम्पत्ति उन्हें मौत स बचाने में समर्थ नहीं हो सकी वह त्यों की त्यों पड़ी रही और उसका स्वामी चुपचाप चलता बना । संसारी जीव की विवशता प्रत्यक्ष दिखाई दे रही है, फिर भी अज्ञान मनुष्य धन का श्राश्रय लेना चाहता है ! मोत को घूस देकर मौत से बचने का सूर्खतापूर्ण विचार करता है !
कदाचित् इस लोक का धन परलोक में हमारी रक्षा न कर सकेगा तो इस लोक में तो करेगा, ऐसा विचारने वालों का भ्रम निवारण करते हुए कहा गया है-" इसस्मि लोप अदुवा परत्था । ' अर्थात् धन न इस लोक में शरण है, न परलोक शरण हैं ।
इस लोक का धन परलोक में साथ नहीं जाता है, अतएव यह स्पष्ट है कि `धन परलोक में शरणदाता नहीं है । परन्तु यह भी प्रत्यक्ष सिद्ध है कि इस लोक का इस लोक में भी शरणदाता नहीं है । जब पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मों का फल भोगना पड़ता है और फल स्वरूप नाना प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक कष्ट झाकर मनुष्य को घेर लेते हैं, तब धन उन कष्टों का प्रतीकार करने में सर्वथा असमर्थ बन जाता है । कभी-कभी ऐसी विकट वेदना का शरीर में प्रादुर्भाव होता है कि लाखों उपाय करने पर भी और करोड़ों रुपये लुटा देने पर भी उसका उपशमन नहीं होता ! इसी प्रकार विरुद्ध वर्त्ताव करने वाले स्वजनों के निमित्त ले जो मानसिक पीड़ा होती है उसका प्रतीकार धन ले होना असंभव वन जाता है । अतएव यह सत्य है कि वित्त के द्वारा सनुष्य न इस लोक में शरण पा सकता है, न परलोक में ही ।
वस्तुत: धन शरणभूत नहीं है, फिरभी जो लोग अज्ञान से आवृत होने के 'कारण उसे श्राश्रयदाता मानते हैं, उनकी क्या दशा होती है ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए सूत्रकार कहते हैं-
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