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________________ यारहवां अध्याय । ४५६ ] कुछ-कुछ काले और कुछ-कुछ लाल वर्ण की, तेजो लेश्या लाल वर्ण की, पद्म लेश्या पीले वर्ण की और शुक्ल लेश्या शुक्ल वर्ण की होती है। - इसी प्रकार कृष्ण लेश्या नीम, नीम का काथ, कड़वी तूंची श्रादि की अपेक्षा अत्यन्त अधिक अनिष्ट कडुवे रस वाली है। नील लेश्या चित्रमूल पीपर, पीपरीमूल मिर्च, साँठ, आदि से, कापोत लेश्या विजौरा, कैथ (कविट्ठ), दाइम, चोर, तेंद. श्रादि से, पीत लेश्या पके हुए आम श्रादि की अपेक्षा, पद्म लेश्या मधु, इक्षुरस आदि की अपेक्षा, और शुक्ल लेश्या गुड़, शकर, आदि से भी अत्यन्त प्रशस्त और उग्र रल वाली होती है। कृष्ण, नील और कापोत लेश्या दुरभिगंध वाली और पीत, पद्म तथा शुक्ल लेश्या सुरभि गंध वाली है। कहा भी है जह गोमडस्ल गंधो, णागमडस्स व जहा अदि मडस्ल । एत्तो उ अगतगुणो, लेस्लाणं श्रप्पसत्थाणं ॥ जद सुरभि कुसुम गंधो, गंधवासाण पिस्लमाणाणं । एत्तो उ अणंतगुणो, पसत्थलेस्लाण तिराहपि ॥ अर्थात् मरी हुई गाय, मरे हुए हाथी और मरे हुए सांप की जैसी गंध होती है उससे अनन्तगुनी अधिक दुर्गध प्रशस्त लेश्याओं की होती है। इससे विपरीत प्रशस्त लेश्याओं की गंध, सुगंधित पुष्पो अथवा पीसे जाते हुए अन्य सुवासित द्रव्यों की सुगंध से अनन्त गुणी अधिक सुगंध होती है। कृष्ण नील और कापोत लेश्या अप्रशस्त स्पर्श वाली तथा तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या प्रशस्त स्पर्श वाली है। कहा भी है-- जह करवयस्स फासो, गोज़िमाए व सागपत्ताणं । पत्तो वि अणंतगुणो, लेस्साणं अप्पसत्थाणं ॥ जह दूरस्त व फासो, नवणीयस्त व सिरीस कुसुमाणं। एत्तो वि भयंतगुणो, पसत्य लेस्साण तिरह पि ॥ अर्थात् जैसे करीत का, गाय की जिह्वा का और शाक के पचों का स्पर्श होता है, इससे अनन्त गुणा अधिक कर्कश स्पर्श अप्रशस्त लेश्याओं का होता है। जैसे बरु, मक्खन और शिरीप के फूल का स्पर्श होता है, उससे अनन्त गुणा अधिक मृदु स्पर्श प्रशस्त लेश्याओं का होता है। प्रादि की तीन लेश्याओं का शीत और रूक्ष स्पर्श चित्त को अस्वस्थ बनाता है और अन्त की तीन प्रशस्त लेश्याओं का स्निग्ध और उष्ण स्पर्य चित्र में संतोष और स्वस्थता उत्पन्न करता है। मूलः-किण्हा नीला काउ, तिगिण वि एयानो यहम्मलेसायो एयाहिं तिहिं वि जीवो, दुग्गई उववजई ॥ १४ ॥
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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