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ग्यारहवां अध्याय.
[ ४४१. ) प्रकरण में बतलाया जा चुका है ।
सृष्टि की रचना करना ईश्वर का स्वभाव न माना जाय तो ईश्वर कभी रचना ही न करेगा। ईश्वर से अधिक शक्तिशाली अन्य कोई वस्तु नहीं है, जो वलात्कार करके ईश्वर ले जगत् का निर्माण करावें । अगर ऐसी कोई वस्तु मानी जाय तो वही वास्तव में ईश्वर कह लाएगी। बेचारा ईश्वर तो उसकी कठपुतली है, जिसे वह मनमाना नाच नचाती है।
इसके अतिरिक्त ईश्वर को एकान्त नित्य माना जाय तो वह सृष्टि की तरह संहार नहीं कर सकेगा । अन्यथा, कभी सृष्टि करने और कभी संहार करने के कारण बह अनित्य हो जायगा।
नित्य होते हुए भी ईश्वर अगर सृष्टि और संहार दोनों कार्य करता है तो यह श्राशंका होती है कि दोनो कार्य एक स्वभाव से करता है या भिन्न-भिन्न स्वभावों से ? दोनों कार्य यदि एक ही स्वभाव से करता है तो सृष्टि और संहार एक ही साथ होने चाहिए । एक स्वभाव से होने वाले दो कार्य भिन्न-भिन्न समयों में नहीं हो सकते। इसके विपरीत जो कार्य भिन्न लमयों में होते हैं उन्हें एक स्वभाव जन्य नहीं माना जा सकता।
सृष्टि करते समय ईश्वर का स्वभाव अन्य होता है और संहार करते समय अन्य होता है ऐसा मानने से ईश्वर में अनित्यता आ जायगी। ईश्वर कभी रजोगुण से युक्त होकर सृष्टि करता है और कभी तमोगुण से युक्त होकर संहार करता है, तो वह नित्य किस प्रकार कहला सकता है ? .
अगर यह कहा जाय कि रजोगुण एवं तमोगुण ईश्वर की दो अवस्थाएं हैं। अवस्थाएँ अनित्य हैं-उत्पन्न होती रहती हैं और नष्ट भी होती रहती है। फिर भी अवस्थावान् ईश्वर सदा सर्वदा एक-सा बना रहता है। उसमें रंचमात्र भी परिवर्तन नहीं होता।
___ यह समाधान ठीक नहीं कहा जा सकता। अवस्थाओं के भेद से अवस्थावान् में भी भेद होना अनिवार्य हैं । जब कोई वस्तु एक अवस्था को छोड़ कर दूसरी अवस्था प्राप्त करती है अर्थात् रूपान्तरित होती है, तब वह उस वस्तु का भी रूपान्तर कहलाता है। अगर ऐसा न माना जाय तो कोई भी वस्तु अनित्य नहीं होगी। क्योंकि . कोई भी मूल वस्तु कभी बदलती नहीं है। प्रत्येक वस्तु की अवस्थाएँ ही बदलती रहती है । वास्तव में अवस्थाएँ और अवस्थावान् पदार्थ कचित् अभिन्न है, अतएव एक को परिवर्तन दूसरे का भी परिवर्तन माना जाता है।
तर्क के खातिर ईश्वर को नित्य मान लिया जाय तो यह प्रश्न उपस्थित होता है कि वह सदैव सृष्टि निर्माण में क्यों नहीं लगा रहता ? जब ईश्वर नित्य है तो उस का सृष्टि कार्य भी नित्य ही होना चाहिए।
इस प्रश्न का उत्तर यदि यह दिया जाय कि ईश्वर अपनी इच्छा के अनुसार
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