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ध्यारहवा अध्याय __ यह होगा कि जगत् के निर्माण का अवसर ही नहीं पा सकेगा। श्रतएव ईश्वर को ही नित्य मान लेना युक्ति संगत है। .
ईश्वर सर्वज्ञ भी है । वह तीन काल और तीन लोक की समस्त वस्तुओं को, समस्त भावों को, पूर्ण रूप से जानता है।
वैशेषिक के इस कथन पर विचार करने से यह सारा कवन निराधार सिद्ध होता है। उन्होंने 'कार्यत्व' हेतु से ईश्वर को कर्त्ता सिद्ध करने का प्रयास किया है, किन्तु हेतु से साध्य की सिद्धि तभी होती है जव व्याप्ति निश्चित हो चुकी हो । व्याप्ति का निश्चय हुए बिना कोई भी हेतु अपना साध्य सिद्ध करने में समर्थ नहीं हो सकता।
वैशेषिकों से यह पूछा जा सकता है कि कार्यत्व हेतु की व्याप्ति सशरीर का के साथ है या अशरीर कर्ता के लाथ ? अगर सशरीर कर्त्ता के साथ व्याप्ति है तो यह प्राशय निकला कि 'जो जो कार्य होते हैं वे सब सशरीर कर्ता के बनाये हुए होते हैं।' पर यह व्याप्ति प्रत्यक्ष से ही खंडित हो जाती है, क्यों कि बिजली, इन्द्रधनुष और मेघ आदि कार्य तो हैं पर उनका कर्त्ता सशरीर नहीं देखा जाता।
अगर यह कहा जायक 'कार्यत्व' हेतु की व्याप्ति अशरीर कर्ता के साथ है, तो यह तात्पर्य निकला कि-जो-जो कार्य होते हैं वे-वे अशरीर कर्ता के बनाये
हुए होते हैं। पर ऐसी व्याप्ति बनाने से घट दृष्टान्त की क्या दशा होगी? घट कार्य __ है पर उसका कर्ता अशरीर नहीं है । शरीरधारी कुंभार घट बनाता है, यह लोकप्रसिद्ध है।
पृथ्वी, पर्वत आदि को श्राप कार्य कहते हैं तो उनमें सर्वथा कार्यत्व है या कथञ्चित् कार्यत्व है ? अगर सर्वथा कार्यस्व का श्राप विधान करते हैं तो हेतु प्रसिद्ध है, क्यों कि द्रव्य की अपेक्षा पृथ्वी आदि में कार्यत्व नहीं हैं । द्रव्य नित्य होता है अतएव पृथ्वी श्रादि भी द्रव्य दृष्टि से नित्य हैं। अगर आप कथञ्चित् कार्यत्व सिद्ध करना चाहते हैं तो श्रापका हेतु विरुद्ध है अर्थात् श्राप एकान्त रूप से की सिद्ध करना चाहते हैं, पर कथंचित् कार्यत्व हेतु के द्वारा एकान्त से विमद्ध कथंचित् कतई ही सिद्ध हो सकता है । इस प्रकार कार्यत्व हेतु दूषित होने के कारण वह ईश्वर को कर्ता सिद्ध करने में समर्थ नहीं है।
अब ईश्वर के विशेषणों पर विचार करना चाहिए । मतभेद के भय से ईश्वर को एक मानना उचित नहीं है। यह श्रावश्क नहीं कि जहां अनेक कर्ता हो वहां मतभेद अवश्य हो । सैकड़ों, हजारों मधु-मानयां मिलकर एक छत्ते का निर्माण फरती , फिर भी सब छत्तों में सर्वत्र समानता पाई जाती है। कहीं भी विशरशता नहीं देखी जाती । फ्या ईश्वर मधु-मक्खियों से भी गये-बीते हैं कि वे भनेक मिलकर पारस्परिक सहमति से सदृश कार्य नहीं कर सकते?
भागर यह कहा जाय कि इत्ता का कर्त्ता एक श्वर ही है, अनेक मधु