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________________ ग्यारहवां अध्याय P४०७ ] अर्थों का वाचक होता है । एक शब्द देश-भेद से भी भिन्न-भिन्न पदार्थों का बोधक देखा जाता है। अगर चार मनुष्य मिल कर यह निश्चय करलें कि हम लोग आपस में 'हाथी' को 'गाय' कहेंगे, तो उनके लिए 'गाय' शब्द हाथी का अर्थ ही प्रकट करेगा। इससे यह प्रमाणित होता है कि एक शब्द स्वभावतः एक ही पदार्थ का बोधक नहीं है, अपितु संकेत के अनुसार ससी पदार्थों का बोधक हो सकता है। इल प्रकार स्वाभाविक शक्ति और संकेत के अनुसार शब्द से श्रर्थ का बोध होता है। श्रोत्र-इन्द्रिय शब्द को ग्रहण करती है, और उसके द्वारा आत्मा को उसके वाच्य अर्थ की प्रतीति होती है। ___ वक्ता के द्वारा बोला हुआ शब्द थोता किस प्रकार सुनता है, शब्द कितनी दूर तक जा सकता है ? श्रादि अनेक प्रश्नों का विवेचन शास्त्रों में विद्यमान है । यहां संक्षेप में इस सम्बन्ध में कथन किया जायगा। यह बतलाया जा चुका है कि भाषा एक प्रकार के (शब्द वर्गणा के ) पुद्गल परमाणुओं से बनती है। यह पुद्गल-परमाणु समस्त लोकालाश में व्याप्त हैं । जय वक्ता बोलता है तो वे पुद्गल शब्द रूप में परिणत हो जाते हैं और एक ही समय में लोक के अन्त भाग तक पहुंच जाते हैं । उनकी गति का वेग इतना तीवतर है कि उसकी कल्पना करना भी कठिन है। आकाश द्रव्य के प्रदेशों की श्रेणियां-पंक्तियां-बनी हुई हैं। यह पंक्तियां पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊपर तथा नीचे, इस प्रकार छहों दिशाओं में विद्यमान हैं। जव वक्ता भाषा का प्रयोग करता है तब इन श्रेणी रूप मार्गों से शब्द फैलता है। चार समय जितने सूक्ष्म काल में शब्द लमस्त लोकाकाश में व्याप्त हो जाता है । श्रोता यदि भाषा की समश्रेणी में स्थित होता है तो वह वक्ता द्वारा बोली हुई भाषा को या भेरी आदि के शब्द को मिश्र रूप में सुनता है और यदि श्रोता विश्रेणी में स्थित होता हैं तो वह वासित शब्द सुनता है। वता द्वारा बोले हुए शब्द ही श्रोता नहीं सुनता, लिन्तु बोले हुए शब्द द्रव्य तथा उन शब्द द्रव्यों से, वासित हुए बीच के शब्द द्रव्य मिल कर मिश्र शब्द कहलाते हैं और उन्हीं मिश्र शब्द द्रव्यों को समश्रेणी स्थित श्रोता सुनता है । विश्रेणी स्थित श्रोता मिश्र शब्द भी नहीं सुन सकता । वह सिर्फ उच्चारित मूल शब्दों द्वारा वासित शब्दों को ही श्रवण करता है । वक्ता द्वारा शब्द रूप ले त्यागे हुए द्रव्यों से अथवा भेरी श्रादि के शब्द द्रव्यों से, बीच में स्थित शब्द रूप परिणति के योग्य (शब्द वर्गणा के) पुद्गल, शब्द रूप में परिणत हो जाते हैं, उन शब्द द्रव्यों को वासित शब्द कहते है । विश्रेणी में स्थित श्रोता ऐसे वासित शब्द ही सुन पाता है, वक्ता द्वारा प्रयुक्त मूल शब्द नहीं। विश्रेणी-स्थित श्रोता मूल शब्द नहीं सुन सकता, इसका कारण यह है कि शब्द श्रेणी के अनुसार ही फैलता है, यह विश्रेणी में नहीं जाता। शब्द द्रव्य इतना सूचम दे कि दीवाल आदि का प्रतिवात भी उसे विश्रेणी में ले जाने में समर्थ नहीं है।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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