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________________ [ ३५८ ] साधु-धर्म निरूपण और अनेक मिथ्यादृष्टि जन मिथ्यात्व की प्रबलता के कारण उसे अकल्याणकारी मान कर उससे दूर रहते हैं। यह सब प्रवचन संबंधी अचान का परिणाम है। इस अंज्ञान को जिन शासन का वास्तविक स्वरूप प्रकट करके हटाना, जिनागम का गंभीर जान प्राप्त करना, उसकी स्याद्वाद शैली को ध्यान में रखते हुए, अपेक्षा भेद को समझते हुए स्वयं उसमें पारंगत होना, देश, काल के अनुसार उसका प्रचलित और सुगम भाषा में अनुवाद करना, उसके आधार पर तुलनात्मक ग्रंथों की रचना करना, उसकी हितकरता, व्यापकता एवं सर्वशालीनता को युक्ति पूर्वक समझाना, जिज्ञासुओं को पढ़ाना आदि प्रवचन की प्रभावना है। (२) धर्म कथा प्रभावना-धर्मोपदेश करके, अपनी वक्तृत्वकला के द्वारा जिन शासन की प्रभावना करना धर्म कथा प्रभावना है। धर्म कथा चार प्रकार की है-९१) श्राक्षपणी [२] विक्षेपणी 1३) संवेगनी और [४] निवेदनी । [क] श्राक्षेपणी कथा-श्रोताओं के हृदय में से राग, द्वेष और मोह निवृत्त । करके तत्वों की ओर आकर्षित करने वाली कथा प्रक्षिपणी कथा कहलाती है । इल कथा के भी चार उपभेद हैं-१ केश-लोच आदि अाचार के द्वारा अथवा प्राचार के व्याख्यान द्वारा श्रोता को अर्हन्त प्ररूपित शासन की ओर आकृष्ट करना प्राचार. श्राक्षेपणी कथा है। २] किसी समय कोई दोष लगने पर उसकी शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त या व्यवहारसूत्र का व्याख्यान करके शासन की ओर श्रोता को प्राकृष्ट करना व्यवहार-माक्षेपणी कथा है। [३] जिसे जिन बचन में कहीं संशय हो उसे मधुर वचनों द्वारा समझाकर या प्रज्ञप्तिसूत्र का व्याख्यान करके शासन की ओर आकृष्ट करना प्रज्ञप्ति-आक्षेपणी कथा है। सात नयों के अनुसार जीवादि तत्त्वों का व्याख्यान करके अथवा दृष्टिवाद का व्याख्यान करके श्रोता को तत्त्वबोध कराना दृष्टिवादश्राक्षेपणी कथा है। आक्षेपणी धर्म कथा के यह चार भेद हैं। शविक्षेपणी कथा-सन्मार्ग का त्याग करके कुमार्ग की ओर जाते हुए श्रोता को सन्मार्ग में स्थापित करने वाली कथा [उपदेश] विक्षेपणी कथा कलाकार। इस कथा में सन्मार्ग के लाभ और कुमार्ग के दोपों एवं हानियों का प्रधान से वर्णन किया जाता है। __ . विलेपणी कथा के चार प्रकार हैं-[१] अईत्-शासन के गुणों को प्रकाशित जाने एकान्तवाद के दोषों का निरूपण करना [२] पर-सिद्धान्त का पूर्व पक्ष के रूप करके स्वकीय सिद्धान्त की प्रमाण और युक्ति के श्राधार से स्थापना करना। सिद्धान्त में जो विषय जिनागम के समान निरूपित हैं उनका दिगदर्शन कराते . हर विपरीत वातों में दोषों का निरूपण करना [४] पर सिद्धान्त में कथित जिनागम से विपरीत वादों का निरूपण करके, जिनागम के समान विषयों का कथन करना। 12] संवेगनी कथा-जिस उपदेश से श्रोता के हृदय में वैराग्य की वृद्धि हो और श्रोता संसार से विरक्त हो उसे संवेगनी कथा कहते हैं। संवेगनी कथा के भी चार भेद है-[१] इहलोक संवेगनी [२] परलोक संवेगनी [३] स्वशरीर संवेगनी
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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