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________________ [ ३५६ ] साधु-धर्म निरूपण का, द्वादश भावनाओं का और द्वादश प्रतिमाओं का निरूपण पहले किया जा चुका है। पांच इन्द्रियों का वर्णन भी पहले श्रा चुका है, उनका दमन करना इन्द्रिय निग्रह है। साधु जो वस्त्र पात्र श्रादि धर्मोपकरण रखते हैं उनकी यथाकाल प्रतिलेखना करना। प्रतिलेखना पच्चीस प्रकार की सूत्र उत्तराध्ययनजी में कही गई है। ' तीन गुप्तियों का स्वरूप पहले बताया जा चुका है । अभिग्रह चार यह हैं[१] द्रव्य अभिग्रह [२] क्षेत्र अभिग्रह [३] काल अभिग्रह और ४] भाव अभिग्रह। 'मैं आज अमुक वस्तु मिलेगी तो आहार लूंगा, अन्यथा नहीं' इस प्रकार का संकल्प करना द्रव्य अभिग्रह है। अमुक स्थान पर श्राहार प्राप्त होगा तो लंगा, अन्यथा नहीं, ऐसा संकल्प करना क्षेत्र-अभिग्रह है । अमुक समय पर मिलेगा तो आहार लूंगा, अन्यथा नहीं, इस प्रकार काल संबंधी संकल्प करना काल-अभिग्रह है। अमुक प्रकार से आहार लूंगा अन्यथा नहीं, इल.तरह का संकल्प कर लेना भाव-अभिग्रह है। तपस्या की विशेष साधना के लिए तथा अन्तराय कर्म के उदय की परीक्षा के लिए मुनिजन अभिग्रह करते हैं। अभिग्रह पूर्ण हो तो आहार ग्रहण करते है, अन्यथा अनशन करके कर्मों की निर्जरा करते हैं। चरण सत्तरि के भी सत्तर प्रकार हैं । वे यह हैं वय-समणधम्म-संजय-वेयावच्चं च वंभ गुत्तीयो। नाणाइ नीयं तव, कोहोनिग्गहाइ चरणमेये ॥ अर्थात्-पांच महाव्रत, दस प्रकार का श्रमण धर्म, सत्तरह प्रकार का संयम, . दस प्रकार का वैयावृत्य, नव वाड़ युक्त ब्रह्मचर्य, सम्यग्ज्ञान श्रादि तीन रत्न, बारह प्रकार का तप, चार क्रोध आदि कषायों का निग्रह, यह सब सत्तर भेद चरणसत्तरी इन सब का स्वरूप प्रायः पहले पा चुका है। उत्तम क्षमा, मुक्ति, आर्जव आदि दस धर्म हैं । संयम के सत्तरह भेद इस प्रकार है (१) पृथ्वीकाय संयम-पृथ्वीकाय की हिंसा न करना, पृथ्वीकाय की यतना करना। (२) अपुकाय संयम-जलकाय के जीवों की यतना करना-प्रारंभ न करना। (३) तेजस्काय संयम-अग्निकाय के जीवों का प्रारम्भ नहीं करना। (४) वायुकाय संयम-वायुकाय के जीवों का आरम्भ न करना। (५) वनस्पतिकाय संयम-वनस्पतिकाय के जीवों का प्रारम्भ नहीं करना। इन पांचों का स्पर्श तक साधु को त्याज्य है। (६) द्वीन्द्रिय संयम ।। (७) श्रीन्द्रिय संयम। (८) चतुरिन्द्रिय संयम । (8) पञ्चेन्द्रिय संयम । इनका अर्थ सुगम है।
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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