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३४ राग-द्वेष - विनय
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अध्याय तृतीय धर्म स्वरूप वर्णन
१ मानव जीवन
२ आठ परिवर्तन
३ त्रस पर्याय की दुर्लभता
४ यथा कर्म तथा फल
५ मनुष्य की दस दशाएँ
६ जीवन की भंगुरता
७ धर्म श्रुति की दुर्लभता धर्म उत्कृष्ट मंगल है
अहिंसा धर्म
१० संयम और तप
११ धर्म का मूल - विनय
१२ विनय के सात भेद
१३ धर्म का पात्र
१४ धर्म के लिए प्रेरणा
१५ निष्फल और सफल जीवन
१६ धर्म की स्थिरता
१७ धर्म ही शरण है
१८ धर्म की ध्रुवता
चतुर्थ अध्याय - आत्म शुद्धि के
१ नरक - तिर्येच गति के के दुःख २ मनुष्य- देव गति के दुःख
३ संसार की विचित्रता
४ बत्तीस योग संग्रह
५ तीर्थकर गोत्र के बीस कारण
६ शुद्धि के कारण
(. शणः )
७ अकाल मृत्यु ८ अधोगति उच्चगति यत्नपूर्वक प्रवृत्ति १० देवलोक गमन ११ आध्यात्मिक श्रग्निहोत्र
१२ श्रध्यात्मिक स्नान
१३०
१३१
१३३
१३५
१३६
१३८
१३६
६४०
१४४
१४६
१५१
१५२
१५५
१५६
१५७
१४८
१५६
१६०
उपाय
१६२
१६३
१६५
१६८
१७०
१७३
१७४
१७७
पंचम अध्याय - ज्ञान प्रकरण
१८७
१८८
१८६
१६०
१६१
१६२
१६३
१६३
१६३
१६५
१६६
१६८
१३ ज्ञान का विषय-शेय
१६६
१४ शून्यवादी का पूर्वपक्ष और खंडन २००
२०१
२०२
२०४
२०४
२०६
२०८
२०८
२१०
२३ एकान्त ज्ञानवादी का समाधान २१३
२४ ज्ञानैकान्त का विषय फल
२१५
२१८
२२०
१ पांच ज्ञान
२ ज्ञानों के क्रम की उत्पत्ति
३ मतिज्ञान श्रुतज्ञान का अन्तर
४ उपयोग का क्रमविकास
५ श्रवग्रह के भेद
६ चक्षु-मन श्रप्राप्यकारी हैं
७ इन्द्रियों की विषयग्रहण शक्ति
श्रुतज्ञान के दो भेद श्रुतज्ञान के चौदह भेद
१० अवधि ज्ञान के भेद
११ मनःपर्याय ज्ञान
१२ केवल ज्ञान..
१५ ज्ञान स्वसंवेदी है
१६ ज्ञान की महिमा
१७ ज्ञान प्राप्ति का उपाय
१८ श्रोता के गुण
१६ श्रुत ज्ञान की उपयोगिता
२० अविद्या का फल
२१ ज्ञान और क्रिया
२२ क्रिया की आवश्यकता
२५ सच्चा ज्ञानी
२६ समभाव
छठा अध्याय - सम्यक्त्वनिरूपण
१ सम्यग्दर्शन
२२४
२ देव, गुरु, धर्म का स्वरूप
२२४
३ सम्यक्त्व प्राप्ति
२२५
४ सम्यक्त्व की आवश्यकता
२२७
५ सम्यक्त्व की स्थिरता के उपाय २२८
२३१
१७८
१७६
१८१
१८३. ६ कालवादी