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________________ [ ३२६ ] साधु-धर्म निरूपण मृषावाद के फल का निरूपण करते हुए बतलाया गया है कि. सृपावाद के श्रादत वाले लोग पुनर्भव रूप अंधकार में भ्रमण करते हैं, दुर्गति में वास करते हैं । वही लोग इस जन्म में बेहाल बुरा फल भोगने वाले, पराधीन, निर्धन, भोगोपभोग की सामग्री से हीन और दुःखी देखे जाते हैं। मृषावादियों के शरीर फूट निकलते हैं । वे वीभत्स और कुरूप होते हैं। उनके शरीर का स्पर्श कठोर होता है। उन्हें किसी जगह चैन नहीं मिलती। उनका शरीर निस्तार, निष्कान्ति और उज्ज्वलता से शून्य होता है। उनकी वाणी अस्फुट और अमान्य होती है। वे अर्सस्कृत असभ्य और अनादरणीय होते हैं। दुर्गध युक्त शरीर वाले, असंज्ञी, तथा अनिष्ट अप्रिय एवं काक के समान स्वर वाले होते हैं। असत्यवादी जड़. बहरा, अंधा और गूंगा होता है । उसकी इन्द्रियां बुरी और विकारवाली होती हैं । वे स्वयं नीच होते हैं और उन्हें नीच लोगों की सेवा करनी पड़ती है । उन्हें लोक में निन्दनीय समझा जाता है और दूसरों के टुकड़ों पर निर्वाह करना पड़ता है। वे अपमान सहते हैं। दूसरे लोग उनकी चुगली करते हैं। उनके प्रेमियों के साथ प्रेम का नाता तुड़वा दिया जाता है वे गुरुजनों, वन्धुजनों और स्वजनों के अपशब्द श्रवण करते हैं और विविध प्रकार के अपवाद (धारोप । सहन करते हैं । उन्हें बुरा भोजन, बुरे वस्त्र मिलते हैं। उन्हें कुरी वस्ती में वास करना पड़ता है । असत्यवादी लोग अगले भव में इस प्रकार अनेक क्लेश पाते हैं। उन्हें मानसिक शान्ति की प्राप्ति नहीं होती। वर्तमान भव और आगामी भव में घोर दुःख, महान् भय, प्रचुर-प्रगाढ़ दारुण और कटोर वेदना भोगे बिना हजारों वर्षों में भी वे असत्यभाषण के फल से छुटकारा नहीं पा सकते और न मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। __शास्त्रकारों ने अलत्य भाषण का यह भयंकर परिणाम प्रकट किया है । इस दारुण परिणाम का विचार करके प्रत्येक विवेकी को असत्य का त्याग करना चाहिए। असत्य का त्याग करके सत्य वचन का ही सदा प्रयोग करना चाहिए। सत्य वचन निर्दोष, पवित्र, शिव, सुजात और सुभाषित रूप हैं। उत्तम पुरुष काही सेवन करते हैं । सत्य के प्रभाव से विविध प्रकार की विद्याएँ सिद्ध होती है स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सत्य सरल है, अकुटिल है, वास्तविक अर्थ का प्रतिपादक है, प्रयोजन से विशुद्ध है, उद्योतकारी है, अविसंवादी है, मधुर है, प्रत्यक्ष देवता के समान श्राश्चर्यजनक कार्यों का साधक है। महासमुद्र के मध्य में स्थित भी प्राणी सत्य के प्रभाव से डूबता नहीं है। सत्य के प्रभाव से अग्निं भी जलाने में असमर्थ हो जाती है । सत्यवादी पुरुष को उबलता हा तेल, रांगा, शीशा या लोहा भी नहीं जला सकता । पर्वत से पटक देने पर भी . सत्यवादी का बाल बांका नहीं होता। विकराल युद्ध में, शत्रुओं से चारों ओर घिर जाने पर भी सत्यनिष्ट पुरुष सही-सलामत निकल पाता है । सत्यवादी की देवता सहायता करते हैं । सत्य साक्षात् भगवान् है। .
SR No.010520
Book TitleNirgrantha Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year
Total Pages787
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size51 MB
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