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कर्म निरूपण एक योजन लम्बा चौड़ा और एक योजन गहरा गढ़ा स्त्रोदा जाय । उसमें सात दिन तक के बच्चे के बालों के ऐसे सूक्ष्मतर टुकड़े करके.कि जिनका दूसरा टुकड़ा . न हो सकता हो, भर दिये जावें-ढूंस-ढूंस कर दवा दिये नावें । उसके बाद सौ-सौ . वर्ष के बाद एक-एक बाल का टुकड़ा ( वालाग्र ) निकाला जाय । इस प्रकार निका-- लते-निकालते जब पूरा गढ़ा खाली हो जाय-उसमें एक भी बालाय न रहे, उतने समय को पल्योपम कहते हैं। ऐसे-ऐसे दस कोड़ाकोड़ी पल्योपम को एक सागरोपम कहते हैं।
सागरोपम का परिमाण गणित के अङ्कों द्वारा प्रगट नहीं किया जा सकता। इस कारण कुछ लोग इस संख्या को अधिकता को देख कर आश्चर्य करने लगते हैं, . पर इसमें आश्चर्य करने योग्य कोई बात नहीं है। जगत् में कितने प्राणी हैं, या भूत और भविष्य काल के कितने समय हैं? यह प्रश्न करने पर सभी कहेंगे-अनन्त । ईश्वरवादी ईश्वर की अनन्त शक्तियां स्वीकार करते हैं। इस प्रकार सभी लोग अनन्त की संख्या स्वीकार करते हैं। अब यह विचार करना चाहिए कि क्या लौकिक संख्या से सीधा अनन्त शुरू हो जाता है ? कदापि नहीं। जैसे सौ तक की संख्या एक, दो, तीन आदि क्रम से आगे चलती है उसी प्रकार लौकिक संख्या की समाप्ति के बाद से लेकर अनन्त की संख्या तक भी कोई कम अवश्य होना चाहिए। और उस क्रम में ही पल्यापम और सागरोषम का भी समावेश होता है । जैले एक के बाद सो नहीं श्रा जाते उसी प्रकार लौकिक संख्या समाप्त होते ही अनन्त नहीं पा जाते । इस प्रकार जरा गंभीरतापूर्वक विचार करने से पल्योपम और सागरोपम आदि की संख्या तनिक भी आश्चर्यकारक प्रतीत नहीं होती हैं।
आगे सब जगह-जहां सागरोप या पल्योपत्र संख्या का कथन हो वहां यही संख्या समझनी चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि एक योजन लम्बे-चौड़े
और गहरे गढ़े को किसी ने भरा नहीं है, सिर्फ संख्या की कल्पना आ जाए, इसी उद्देश्य से उपमा देकर समझाने का शास्त्रमारों ने प्रयत्न किया है। मूल:-उदहीसरिसनामाणं, सत्तर कोडिकोडीयो।
मोहणिजस्स उकोसा, अन्तोमुहत्तं जहरिणया॥१८॥ तेत्तीसं सागरोबम, उक्कोसेण विवाहिया । ठिई उग्राउकम्मस्त, अन्तोमहत्तं जहरिणया ॥१६॥ उदहीसरिसनामाणं, वीसई कोडिकोडीयो। नामगोत्ताण उक्कोसा, अट्ठमुहत्ता जहरिणया ॥२०॥ छाया:-द सरनाम्नां, सप्ततिः कोटीकोव्यः ।
- मदनीवस्या कष्टा, अन्तर्मुहर्ना जयन्यका ॥ . .