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षट् द्रव्य निरूपण छायाः-एकरवञ्च पृथक्वन्च, संख्या संस्थानमेव च ।
संयोगाश्च विभागाश्च, पर्यवानां तु लक्षणम् ॥ ११ ॥ शब्दार्थः-एकत्व, पृथक्त्व (भिन्नता), संख्या, संस्थान (आकार), संयोग और विमाग; यह सब पर्यायों के लक्षण हैं।
भाष्यः-द्रव्य, गुण और पर्याय के स्वरूप का प्रतिपादन करने के पश्चात् पर्यायों के विषय में अन्य तीर्थी लोगों के भ्रम का निराकरण करने के लिए पर्यायों का . विशेष रूप से विवेचन किया गया है।
_ 'यह एक है' इस प्रकार के व्यवहार का कारणभूत पर्याय 'एकत्व' है । 'यह इससे भिन्न है' इस प्रकार का व्यवहार जिस धर्म के कारण होता है उसे पृथक्त्व कहते हैं। जिसके द्वारा दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात श्रादि का व्यवहार होता है उसे संख्या कहते हैं। लम्बा, चौड़ा, चपटा, गोल, तिकोना, चौकोर आदि पदार्थों के प्राकार को संस्थान कहते हैं। सान्तर रूपता को त्याग कर वस्तु का निरन्तर (अंतर रहित) रूप में उत्पन्न होना संयोग कहलाता है और निरन्तर रूपता का परित्याग करके लान्तर ( अन्तर सहित ) रूप अवस्था में परिणत होना विभाग कहलाता है।
यह सब पदार्थों की पर्यायों हैं। वैशेषिक लोग संख्या, पृथक्त्व, संयोग, विभाग श्रादि को द्रव्य से सर्वथा भिन्न गुण मानते हैं, सो ठीक नहीं है।
संख्या, संख्येय पदार्थ से भिन्न प्रतीत नहीं होती है, अतएव उले उससे भिन्न मानना उचित नहीं है। अगर यह कहा जाय कि दृश्य न होनेके कारण संख्या दिखाई नहीं देती है, जैले परमाणु का अस्तित्व तो है परन्तु वह दृश्य न होने से हमें दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार संख्या भी। लेकिन जैसे परमाणु का अस्तित्व स्वीकार किया जाता है उसी प्रकार संन्या फासी अस्तित्व स्वीकार करना चाहिए।
_वैशेषिकों का यह कथन ठीक नहीं है, क्योंकि उन्होंने संख्या को अदृश्य नहीं किन्तु दृश्य माना है। उनका सूत्र इस प्रकार है-'संख्यापरिमाणानि पृथकत्वं संयोग विभागौ परत्वापरत्वे कर्म च रूपिसमवाया चानुपाणीति, । यहाँ संख्या को चक्षु-इंद्रिय । का विषय बताया गया है। अतः चक्षु का विषय होने पर भी संख्या, संख्येय पदार्थ " से भिन्न नहीं प्रतीत होती, इसलिए उसे संख्येय पदार्थ की ही पर्याय मानना चाहिए, पृथक् नहीं।
शंका-'यह पुरुष दंडी है' इस प्रकार का ज्ञान अकेले पुरुष को देखने से नहीं होता! पुरुप के लिनध्य दंड ( डंडा ) का दिखाई देना आवश्यक है, इसी प्रकार 'यह एक पुरुप हैं इस प्रकार का ज्ञान अकेले पुरुष से नहीं होता। उसके लिए पुरुष के अतिरिक्त और भी कोई कारण होना चाहिए । वह अतिरिक्त कारण ही संख्या है। इससे संख्या, पुरुप से अलग है यह बात सहज ही मालूम होती है।
समाधान-'यह एक पुरुष है' इस ज्ञान के लिए पुरुष में रहने वाली, परन्तु. पुरुप ले भिन्न, संख्या भी आवश्यहा समझाते हो तो 'यह एक गुण है' इस ज्ञान के