________________
[ ६४ ] .
___ षट् द्रव्य निरूपण .. (६) सूक्ष्म सूक्ष्म-जो पुद्गल कर्म-वर्गणाओं से भी अत्यन्त सूक्ष्म हैं, ऐसा द्वयणुक पर्यन्त स्कंध सूक्ष्म सूक्ष्म कहलाते हैं।
इन छह पुद्गल-स्कंधों से ही यह समस्त दृश्य जगत् निष्पन्न हुआ है। मूल:-गुणाणमासो दव्वं, एगदव्वस्तिया गुणा ।
लक्खणं पजवाणं तु, उभी अस्तिया भवे ॥ १६ ॥ छाया-गुणानामाश्रयो द्रव्यं, एकद्रव्याश्रिता गुणाः । ..
लक्षणं पर्यवानो तु, उभयो राश्रिता भवन्ति ।। १६॥ .. शब्दार्थ:-जो गुणों का आधार है वह द्रव्य है । गुण अकेले द्रव्य में ही रहते हैं किन्तु पर्यायों का लक्षण दोनों में अर्थात द्रव्य और गुण में आश्रित होना है ॥ १६ ॥ .
भाष्यः-षट् द्रव्यों के स्वरूप का विवेचन करने के अन्तर अव द्रव्य, गुण और पर्याय का कथन करने के लिए तथा इन तीनों का पारस्परिक अन्तर-समझाने के लिए, यह गाथा कही गई है।
प्रस्तुत गाथा में तीन बातों का विवेचन किया गया है-- (१) द्रव्य, गुणों का प्राश्रय है। . . . . (२) गुण केवल द्रव्य में ही रहते हैं। {३) पर्यायें द्रव्य में भी रहती हैं और गुणों में भी रहती हैं।
जगत् के किसी भी पदार्थ को यदि सूक्ष्म रूप से अवलोकन किया जाय तो ज्ञात होगा कि किसी भी पदार्थ का निरन्वय विनाश कभी नहीं होता । प्रत्येक पदार्थ किसी न किसी रूप में वना ही रहता है। उदाहरण के लिए मिट्टी को लीजिए । मिट्टी पुद्गल है। कुंभार खेत में से मिट्टी लाता है और उसमें पानी श्रादि मिला कर उसका पिंड बनाता है । पिंड वना देने पर भी पुगुल ( मिट्टी ) किसी रूप में विद्यमान है।
पिंड बनाने के पश्चात् कुंभार उस चाक पर चढ़ाता है और उसे घट के आकार में पलट देता है। मिट्टी में एक नया श्राकार उत्पन्न होता है फिर भी पुद्गल (मिट्टी) किसी रूप में विद्यमान है।
घट थोड़े दिनों के अनन्तर, चोट लग जाने पर फूट जाता है। उसके टुकड़ेटुकड़े हो जाते हैं। अब वही पुदल ( मिट्ट । फिर नये आकार को धारण करता है । . यह नवीन श्राकार उत्पन्न हो जाने पर भी पुल मिली रूप में विद्यमान है।
टुकड़ों को पीस कर कोई मनुष्य उसका चूर्ण बना डालता है तब फिर एक नवीन श्राकार उत्पन्न होता है, किन्तु पुगल किसी रूप में विद्यमान है।
बनाये हुए चूर्ण को कोई हवा में उड़ा देता है। लेकिन क्या उल पुगल का समूल नाश हो गया ? नहीं। उसमें के अनेक कारण किसाक कान में चले गये और वे काल का मैल बन गये । कुछ करण कीचड़ में गिर गये और कीचड़ सूखने पर फिर