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जैनतत्त्वादर्श, प्रमुख तथा युवावस्थामां धन उपार्जन करवानुं जुःख, इष्ट वस्तुनो वियोग, अनिष्ट वस्तुनो संयोग इत्यादि, तथा वृद्धावस्थामा शरीर- कंपवू, नेत्रनुं बलहीनपणुं, तथा श्वास, खांसी प्रमुख अनेक व्याधियी महापु:खोजें उत्पन्न थर्बु इत्यादि ज्यां निरंतर डे त्यां एवी कश् दशा ले के प्राणी सुख प्राप्त करे ? श्रआ मनुष्यगति कही- तथा सम्यक् दर्शनादि पालवाथी जे जीव देवता थाय ने ते पण शोक, विषाद, मत्सर, नय, अल्प शद्धिथी इर्ष्या, काम, मद, लुधा प्रमुखथी पीडित थवाथी पोतानुं आयुष्य दीन मनवाला थश्ने पूर्ण करे . या देवगति कही. या प्रमाणे मोक्षानिलाषी जीव संसारजावना नावे.
४ एकत्वनावना कहियें लिये. जीव एकलोज उत्पन्न थाय , अने एकलोज मरण पामे बे; एकलोज कर्म करे , अने एकलोज तेनुं फल जोगवे जे. वली जीवें अत्यंत कष्ट जोगवी जे धन उपार्जन करेलुं ने ते धन तो स्त्री, मित्र,पुत्र,बंधु प्रमुख खा जशे, अने जे पाप कर्म ते धन उपार्जन करवामां बांध्यां ने तेनुं फल तो तेने एकलानेज नरक, तिर्यंच गतिमा जश्ने जोगव, पडे था केआश्चर्य ले ? तथा श्रा जीव, श्रा देहने वास्ते, रात दिन अटन करे , दीनपणुं धारण करे , धर्मथीनष्ट थाय डे, पोताना हितमां उगाय , न्यायथी दूर रहे इत्यादि अनेक कृत्य करे , परंतु था देह, श्रात्मानी साथे परजवमा एक पगला जेटली जगा सूधी पण ते साथे श्रावशे नहि. हवे विचार करो के था देह करशे ? शुं मदद आपशे ? वली सगां वाहालां सर्व पोत पोताना खार्थमा तत्पर डे, वास्तवमां को तारुं नथी, ते वास्ते हे बुद्धिमन् ! तुं पोताना हितने माटे धर्म करवामांप्रयत्न कस्य, श्रा प्रमाणे एकत्व नावना जावे. ___५ अन्यत्वनावना कहियें लिये. था संसारमा तुं कोनो नथी अने को तारुं नथी. माता, पिता, स्त्री, पुत्र, नाश् प्रमुख सगां तथा संबंधियो. ज्यां सुधी ताराथी तेऊनी कार्यसिफि थाय ने त्यां सुधी तुं तेऊना प्राण समान वाहालो ने तेम ते मानशे परंतु स्वार्थ सिकिमां नंग थये जाणे एक बीजाने लेशमात्र संबंध नथी एम शासन थतां वेर जाव पण उत्पन्न थशे. वली था देहने बोडी जीव परलोकमां जाय तेथी श्रा शरीरथी जीव जिन्न ने तेम उतां अनेक प्रकारनां खान, पान, जोग,