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(७४) जैनतत्त्वादर्श.
उत्तरः- तौरेत नामनो ग्रंथ , तेमां एम लख्यु डे के, ईश्वरें अबरहामने त्यां रोटी खाधी, तथा याकुबनी साथे कुस्ती करी; था लखापथी प्रतीत थाय बे के ईश्वर देहधारी जे. वली शंकरदिगविजयना बीजा प्रकरणमां शंकरखा मिना शिष्य आनंदगिरि तेज ग्रंथना आदिमां लखे के “हुँ सर्वज्ञ हूँ" ते लखिये बियें. “ज्यारे नारदजीए जोयुं के श्रा लोकमां बहुज कपोलकल्पित मत उत्पन्न थया ने, श्रने सनातन धमें लुप्त थयो , त्यारे ते तत्काल ब्रह्माजीपासे पहोच्या. अने जश्ने केहेवा लाग्या के हे पिताजी! आपनो मत तो प्रायः रह्यो नश्री, अने लोकोए अनेक मत चलाव्या बे, तेथी आ वातनो कांश उपाय करवो जोश्ये; ते सांजली ब्रह्माजी बहु वखत सुधी विचार करीने, पुत्र, मित्र, नक्त जनोंने साथे लश्ने पोताना लोकथी निकली शिवलोकमां प्रवेश करता हवा. त्यां जश् जुए तो मध्याह्नमां कोड सूर्यनो प्रकाश होय नहि, तथा कोड चंजमा समान शीतल, जेने पांच मुख , चंजमा मुगटमां ने विजलीवत् पिंगलि जटा धारण करी , अने पार्वती जेना वामार्क अंगमा डे एवा सर्वना ईश्वर, महादेव दीग. पडी ब्रह्माजीये नमस्कार करी स्तुति करी; अने केहेवा लाग्या के हे महादेव ! सर्वज्ञ, सर्वलोकेश, सर्वसादी, सर्वमय, सर्व कारण इत्यादि-आ लखवाश्री प्रगट प्रतीत थाय डे के ईश्वर देहधारी बे, जो देहधारी ईश्वर न होय तो पड़ी पांच मुख केम होय ? आ लखाणथी ईश्वर शरीररहित सिद्ध 'थता नथी. हवे जो शरीरधारी ईश्वर होय तो तो आ लोकमां ईश्वरज व्यापी रदेशे, अने बीजा पदार्थोंने रेहेवामाटे बीजो लोक जोश्शे. जो एम कहो के ज्ञानात्माथी ईश्वर सर्वव्यापक तो तो सिझसाध्य नथी; अमे पण झानखरूपथी तो जगवानने सर्वव्यापी मानियेंद्रियें. परंतु जु5. तमारा वेदथी विरुद्ध न होय ? कारण के वेदोमां शरीरथीज सर्व व्यापक कहेल . यथा. “विश्वतश्चकुरुत विश्वतोमुखोविश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पादित्यादि श्रुतेः" आ श्रुतिश्री सिद्ध थाय ने के ईश्वर शरीरश्रीज सर्वव्यापक , अने तेम होवाथी पूर्वोक्त दूषणो आवे ने तेथी ईश्वर सवव्यापक नथी. वली श्राप कहो हो के ईश्वर सर्वज्ञ , परंतु तमारा ईश्वर सर्वज्ञ पण नथी; कारण के अमे जे सृष्टिकर्ता ईश्वरना खंमन क