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(४४) जैनतत्त्वादर्श. काम करवामा प्रवर्ताव्या नथी. बुरां काम करवामां जीव पोतेज प्रवृत्त थयेल. जेम के को गृहस्थे पोताना प्रिय बालक पुत्रने खेलवा माटे एक रमकडं दीg, हवे जो ते बालक ते खेलवानी वस्तुथी पोतानी आंख खोवे तो तेमां तेना पितानो शुं दोष ? तेवीज रीते ईश्वरें जीवोने जे हाथ, पग प्रमुख वस्तु पापी ते नित्य केवल धर्म करवाने वास्ते श्रापेली बे, पडी जे जीव पोतानी श्वाथी ते वस्तुने पापकममा प्रवर्गवे तो तेमां ईश्वरनो शुं दोष ?
उत्तरपद-हे जव्य ? श्रा जे तमे बालकनुं दृष्टांत आप्युं ते समीचीन नथी. कारण के बालकना मातपिताने ए ज्ञान नथी के बालकने खेलवा वास्ते श्रापणे जे वस्तु आपियें लिये ते खेलवानी वस्तुथी श्रा बालक पोतानी आंख फोडी नाखशे, जो कदापि बालकना मातपिताने ए ज्ञान होत के आ बालक खेलवानी वस्तुथी पोतानी आंख फोडी नाखशे तो ते माता पिता कदापि तेना हाथमां ते खेलवानी वस्तु श्रापत नहि, जो कदी जाणवा बतां आपे तो ते तेनां मातपिता नथी परंतु परम शत्रु डे. तेवीज रीतें ईश्वर मातपिता तुल्य डे अने तमे श्रमे तेनां बालक बियें. जो ईश्वर जाणता हता के में श्रा जीवोने रच्या, तेउँने हाथ, पग, मन इंजियादि सामग्री थापी ,श्रा जीव ते सामग्रीथी बहु पाप करीने नरकमां जानार बे, तो पड़ी ईश्वरे ते जीवने शा माटे रच्यो? जो कदी एम कहो के ईश्वर ए वात जाणता न होता के में धर्म करवाने आपेली सामग्रीश्री पाप करीने ते जीव नरकमां जाशे, तो पड़ी ईश्वर श्रापना केहेवाथीज अज्ञानी, असर्वज्ञ, सिक थाय . जो कदी एम कहो के ईश्वर जाणता हता के आ जीव मारी आपेली सामग्रीथी पाप करीने नरक जवानो ने तो पड़ी अमने रचनार ईश्वर परम शत्रु थया के नहि.? प्रयोजन विना रांक जीवोने सामग्रीहारा पाप करावीने शा माटे तेउने नरकमां नाख्या ? ज्यारे सामग्रीद्वारा प्रथम पाप कराव्यां श्रने पड़ी नरकमां जवानी शिक्षा करी त्यारे आ तमारा केहेवाथी ईश्वर करतां अधिक श्रन्यायी कोई नथी; कारण के प्रथम तो ते जीवने रच्यो, पढ़ी नरकमां नारच्यो. बस ाथीज तमे ईश्वरने अन्यायी,