SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्पण पत्रिका. - अनेक गुणगणालंकृत सुज्ञ मुरबी शेठ __ आणंदजी परशोतमनी सेवामा मुण नावनगर. बाल्यावस्थाथी स्वशक्तिबले सांसारिक व्यापारमा अन्युदय प्राप्त थवाथी श्रापे खोपार्जित अव्यनो,अन्य अन्य प्रसंगे, तीर्थयात्रा, उद्यापन (उजमणु) अहा महोत्सव, शत्रुजय महातीर्थ । उपर जीनबिंबोनुं स्थापन, श्रदयनीधियादि धर्मकार्योमां अंतःकरणना धार्मिक उत्साहथी व्यय करी पोताना आत्माने निमल करेलो डे, अने तेवी निर्मलता प्राप्त थवाथी वृद्धावस्थामा शांतरसनो आपना अंतःकरणमां जमाव थयो, तेनो प्रत्यक्ष अनुजव जावनगरना जैनसमुदायमां प्रसंगे प्रसंगे यता उंचा मनने शांति पमाडवामां आपनुं अंतःकरण साधनचूत थायडे, एवां अनेक कारणोने लीधे, तेमज मारा उपर आप अत्यंत प्रीति न राखो डो; तेथी था जापान्तररूप ग्रंथ आपने सविनय अर्पण करंडं ते स्विकारशो. र नावनगर, ता० १७ नोवेंबर ली. आझांकित, भाषांतर कर्ता. ՀԵս
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy