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वादश परिच्छेद.
(LEP)
ज्योतिष शास्त्र बनाव्युं. उपसर्गहस्तोत्र बनाव्युं. एवीरीते जैनमतवालाई उपर बहुज उपकार कर्यो. बाहुखा मिने वराह मिहिर नामना एक सगा नाइ हता, ते प्रथम तो जैनमतना साधु थया हता, पढी साधुपणुं तजी दीधुं, तेमणे वराही संहिता बनावी. विक्रमादित्यनी सजामां जे वराह मिहिर पंडित हता ते बीजा वराहमिहिर थया बे. संहिताकारक ते नहीं. तेमनुं सर्व वृत्तांत परिशिष्ट पर्वथी जाणवुं श्रीमद्रबाहुखामि पीसतालीस वर्ष गृहस्थावास, सत्तर वर्ष व्रतपर्याय चौद वर्ष युगप्रधान, सर्व श्रायु ढोंतेर वर्षनुं जोगवी श्रीमहावीर पछी ( १७० ) वर्षे खर्गे गया.
श्री संभूतविजय तथा श्रीमद्रबाहु खामिनी पाट उपर श्रीस्थूलखामि बेठा तेमनो सर्व वृत्तांत परिशिष्ट पर्व ग्रंथथी जाणवो. १ प्र जवखामि, २ शिय्यंजवखामि, ३ यशोजस्वामि, संभूतविजय, ५. जबाहुस्वामि, ६ स्थूलन था व याचायों चौद पूर्वना वेत्ता हता. श्री स्थूलनजी त्रीस वर्ष गृहस्थावास, चोवीस वर्ष व्रतपर्याय, पीसतालीस वर्ष युगप्रधान पदवी, सर्व श्रायु नवाएं वर्षनुं जोगवी श्रीमहावीर पी (२१५) वर्षे स्वर्ग मां गया. श्रीमहावीर पढी बसे चौद वर्षे श्राषाढ श्रा चार्यनो शिष्य त्रीजो निन्द्रव थयो.
स्थूलिनडजीना समयमां नवनंदोनुं ( १५५ ) एकसो पंचावन वर्षतुं राज्य उत्थापी चाणाक्य ब्राह्मणे चंद्रगुप्त राजाने राज्य सिंहासन उपर बेसाड्यो. चंद्रगुप्तना वंशजोए (१०८) वर्षसुधी राज्य कर्यु. चंद्रगुप्तना पितानुं नाम मोरपाल हतुं, तेथी चंद्रगुप्तनो मौर्यवंश कदेवाय बे. चंद्रगुप्त जैनमती श्रावक राजा हतो. चंद्रगुप्त तथा नव नंदोनुं वृत्तांत परिशिष्ट पर्व, उत्तराध्ययनवृत्ति तथा घ्यावश्यकवृत्तिथी जोइ लेवुं.
श्री स्थूलभद्रस्वामि पढी उपरना चार पूर्व, प्रथम संहनन, प्रथम संस्थान विछेद थइ गयां. श्रीमहावीर पछी (२२०) वर्षे श्रश्वमित्र नामनो चोथो क्षणिकवादि निन्दव थयो. श्रीस्थूलनजीना समयमां बार वर्षनो डुकाल पढ्यो, प्यारे चंद्रगुप्तनुं राज्य हतुं; तथा श्रीमहावीर पढी ( २२० ) वर्ष वित्याबाद गंग नामनो पांचमो निन्हव थयो.
श्री स्थूलनजी पढी तेमना वे शिष्यो एक आर्यमहागिरि तथा बीजा सुहस्ति सूरि श्रातमी पाठ उपर बेठा, श्रार्यमहागिरिना शिष्य
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