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________________ (५५६) जैनतत्त्वादर्श. श्वरे कयु के तमे तेज अवस्थामा अर्थात् उमाना जगमा महेश्वरनुं लिंग स्थापन करी पूजा करो, तोज हुँ तसोने जीवता बोईं. लोकोये तेज प्रमाणे अंगीकार करी पुजा करवी शरु करी. नंदीश्वरे तेज प्रमाणे अनेक गाम, नगरोमां लोकोने डरावी मंदिरो वंधाव्यां, तेमां पूर्वोक्त श्राकारे जगमां लिंग स्थापन करी पूजा करावी,आ श्रीमहावीरना अविरती सम्यग्रदृष्टि श्रावक महेश्वरनी उत्पत्ति बे. श्री महावीर खामिना समयमा राजगृह नगरमां श्रेणिक राजानी चेलणा राणीने कोणिक नामनो पुत्र अयो. कोणिकने तेना पिता श्रेणिकनी साथे पूर्व जन्मनुं वेर हतुं, तेथी कोणिक मोटो थतां तेणे श्रेणिकने गादीउपरथी उगडी, पकडीने पांजरामां केद कर्यो; अने राज्यगादी उपर पोते वेगे. एकदा पोतानी माता चेलणाए प्रसंगवशात् कोणिकने कडं के तुं तारा पिताने जेवो वहालो हतो, तेवो कोइ पण वीजो पुत्र वहालो न होतो, कारण के ज्यारे तुं वालक हतो, त्यारे तारी आंगली पाकी हती, जेथी तने रात्रिए विलकुल निमा आवती न होती, अने श्राखी रात तुं रोया करतो हतो. ते वखते तारा पिता तारी आंगलीने पोताना मुखमां लश् तने आरास थवा माटे ते पाकेली आंगलीतुं रुधिर तथा परु चुसी, थुकी काढता हता; इत्यादि अनेक प्रकारथी तारा पिताये तारी उपर स्नेह करेल , अने तें तो पूर्वना उपकारनो बदलो तेने पांजरामां घाली केद राखवारुप करेलो . माटे वाह ! पुत्र ! तारी लायकी केटली कहुँ ? माताना या प्रमाणेना वचनो सांजली कोणिक बहुज कुःखी थयो, अने पोताथी ययेला अकार्यने माटे रोवा लाग्यो, अने विचार कयों के हुँ पोतेज जश् पिताश्रीने मारा हाथथी पांजरामांथी कहाडी राज्य सिंहासन उपर वेसाडं. एवा निश्चयथी कुहाडो लश् दोडतो पितानी पासे श्राव्यो. श्रेणिके विचार कर्यों के कोणिक कुहाडो लश् दोडतो मारी उपर आवे बे, जेभी आजे सने केवी रीते कमोतथी मारशे ? एवा जयथी श्रेणिक कांश्क खाइने मरी गया. ज्यारे कोणिके पोताना पिताने मरी गयेला दीग त्यारे ते बहुज रोयो तथा कुटवा लाग्यो, अने श्रत्यंत शोकमां निमग्न थयो. ज्यारे राजगृहनी बहार तथा अंदर श्रेणिकना राजमेहेलो तथा सिंहासनादि देखतो, त्यारे ते अत्यंत दिलगीर थतो.
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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