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जैनतत्वादर्श.
परंतु तमारा स्नेही तमारी पासे रहेवा इतु बुं. कृष्णे कधुं के दे ना. ! तमो रहेवा बतां पण, मारे करेला कर्मनुं फल तो अवश्य जोगववानुंज बे, परंतु मने या दुःखयी ते दुःख बहुज अधिक लागे ठे के:- हुं, द्वारिका तथा सकल परिवार दग्ध यह जवाथी एकलो कोशंबी वनमां जरा कुमारना तीरथी मृत्यु पाम्यो, जेथी मारा शत्रुर्जने सुख ने मारा मित्रोने दुःख थयुं. जगत्मां सर्व यदुवंश बदनाम थयो. ते कारणयी दे जाइ ! तमो जरतखंडमां जइ चक्र, शारंग, शंख, तथा गदा धारण करना, पीला वस्त्रवालुं छाने गरुडनी ध्वजावालुं, मारुं रूप बनावी, विमानमां बेसी, लोकोने ते प्रमाणे बतावो तथा नील वस्त्रवालु तालध्वज, हल, मुशल, शस्त्रने धारण करेलुं एवं तमारुं रूप पण विमानमां बेसी लोकोने बतावो ने सर्व जगोए लोकोने कहो के, राम कृष्ण एवाश्रमे ने अविनाशी उइए, तथा स्वेच्छाविहारी बाइए. ज्यारे लोकोने श्रसत्य प्रतीत था जशे, त्यारे अमारो सर्व अपयश दूर थ जशे. श्री कृष्णनुं पूर्वोक्त सर्व कथन श्री वलनजीए विकारी लीधुं. बलभद्रजी जरतखंडमां आवी कृष्ण वलनयनुं रूप करी सर्व जगोए विमानमां बेसी, लोकोने कड़ेवा लाग्या के, हे लोको ! तमे कृष्ण बलमनी अर्थात् श्रमो वंनेनी सुंदर प्रतिमा बनावी, इश्वरनी बुद्धिथी, अति आदर सत्कारथी, तेनी पूजा जक्ति करो ? कारण के श्रमेज जगत्ना रचनारा बए, अने स्थिति संहार करनारा पण अमेज इए. श्रमे पोतानी इछा पूर्वक स्वर्ग ( वैकुंठ ) मांथी चाल्या श्रावीए बए, फरी मारी वा प्रमाणे स्वर्गमां जइए बीए. द्वारिकानी रचना श्रमेज करी हती, ने मेज द्वारिकानो संहार कर्यो छे, कारण के ज्यारे श्रमे वैकुंठमां जवानी इछा करीए बीए, त्यारे द्वारिका सहित पोतानो सर्व वंश नाश करी चाल्या जइए बीए. मारी उपरांत बीजो कोइ कर्त्ता हर्त्ता नथी. या प्रमाणे बलभद्रजीनुं कहेतुं सांजली सर्व नगर तथा गामोना लोको, कृष्ण बलमजीनी प्रतिमा, सर्व जगोए बनावी पूजवा लाग्या. जेथी चलनजी प्रतिमा पूजनाराउने धन, धान्यादि अनेक वस्तुनो लाभ प्रापी सुखी करता हता. तेज कारणथी बहु लोको ह रिजक्त यर गया. ज्यारथी ते जक्त थया त्यारथी पुस्तको बनावी कृ