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________________ एकादश परिजेद. (५४१) स्नेहथी रूपाली करी, श्रने रेणुकाने लइ पोताना आश्रममां आव्या. ते मुग्धा, मधुर आकृति, दरिणादीने प्रेमथी वृधि पमाडता हवा. थांगली उपर दिवस गणतां अनुक्रमे ज्यारे रेणुका सुंदर यौवन रूप कामलीलायुक्त वनने प्राप्त अश्, त्यारे, जमदनिए अग्निनी सादीए रेणुकानी साथे फरी लग्न कर्यु, ज्यारे रेणुका रुतुकालने प्राप्त थर, त्यारे जमदमि कहेवा लाग्या के हे प्रिये ! हुँ तारा वास्ते चरु साधु बु. " चरु ते होममा नाखवानी वस्तु कहेवाय डे" जेना प्रतापथी सर्व ब्राह्मणोमां उत्तम प्रतापवालो तने एक पुत्र थशे. रेणुकाए कयु हस्तिनापुरमा कुरुवंशी अनंतवीर्य राजानी साथे मारी एक बेहेन परणावी . तेने वास्ते एक क्षत्रीय चरु पण साधो, पड़ी जमदनिए ब्राह्मण चरु पोतानी नार्या वास्ते, अने क्षत्रिय चरु पोतानी जार्यानी बेहेन वास्ते सिक कर्यो. हवे रेणुकाए मनमा विचार कयों के हुँ जेम अटवीमां हरणीनी जेम रहुं बुं तेम, मारो पुत्र पण जंगलोमां तेवीज रीते रहेशे, तेथी क्षत्रिय चरु जो हुं जक्षण करूं तो मने राजपुत्र थाय, जेथी जंगलवासथी बुटे, एवो विचार करी क्षत्रिय चरु पोते खा लीधो, अने ब्राह्मण चरु पोतानी बेहेनने खवराव्यो. बनेने पुत्रो प्रसव्या. रेणुकाए जे पुत्र प्रसव्यो तेनुं नाम राम पाड्यु, अने तेनी बेहेननां पुत्रनुं नाम कृतवीर्य पाड्यु. अनुक्रमे बंने मोटा थया. राम आश्रममा मोटो थयो, कृतवीर्य राजमेहेलोमा मोटो थयो. राम क्षत्रिय तेज देखाडवा लाग्यो. अन्यदा एक विद्याधर अतिसार रोगवालो ते आश्रममा श्रावी पहोंच्यो, अतिसारना कारणथी श्राकाशगामिनी विद्या नूली गयो, ते मांदा विद्याधरनी रामे औषध, पथ्यादिथी जानी जेम आसना वासना करी. विद्याधरे संतुष्ट थ रामने परशुविद्या आपी. राम पण सरकडाना वनमां जर ते विद्या सिझ करवा लाग्यो. ते विद्याना प्रजावथी राम जगत्मा परशुराम नामथी प्रसिक थयो. एकदा रेणुका, जमदग्निनी श्राज्ञा लश् उत्कंगथी पोतानी बेहेनने मलवावास्ते हस्तिनापुरमां गश्रेणुकाने पोतानी साली जाणी अनंतवीर्य राजा मश्करी करवा लाग्यो.अनुक्रमे कामासक्त थवाथी निरंकुश थ रेणुका साथे विषय सेवन करवा लाग्यो. अनंतवीर्यना जोगथी रेणुकाने एक पुत्र थयो, बतां विषयमां श्र
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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