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जैनतत्त्वादर्श. जाणी, उःखी थवाथी वसु राजानी पासे गश्. पुत्रना जीवितव्य वास्ते कोण एवो बे के जे उपाय न करे ? वसुराजाए पोताना गुरुनी पत्नीने थावतां देखी अपार सन्मान आप्यु. सिंहासन उपरथी उन्नो थयो, अने कहेवा लाग्यो के हे माता ! आजे में मारा गुरुराजना दर्शन काँ. मारा सरखं जे काम होय ते मने फरमावो ? गुरुपत्नीए कह्यु के हे वसुराज! मने पुत्रनी निदा आपो ? पुत्र विना मारे धन धान्यादि \ कामना ने ? वसुराजा ते सांजली कहेवा लाग्या के हे माता ! पर्वत तो मारे पू. जवा योग्य तथा पालवा योग्य बे, कारण के गुरुनी जेम गुरुना पुत्रनी साथे पण वर्तवं जोशए, एम श्रुति वाक्य बे; तो हवे कोणे क्रोधमां श्रावी कालने पत्रथी आमंत्रण कर्यु ले ? जे मारा जाइ पर्वतने मारवा चाहे ? वास्ते हे माता! तमे सर्व वृत्तांत मने कहो ? गुरुपत्नीए सर्व वृत्तांत प्रतिज्ञा लीधी त्यां सुधीनो कही वताव्यो; बेवटे कयु के जो तमारा नाश्नी रदा करवी होय तो अज शब्दनो मेष अर्थात् वकरो या वकरी अर्थ करवो, कारण के महात्मा पुरुषो परोपकार वास्ते पोताना प्राण पण अर्पण करे , अने आपने तो मात्र वचनथी परोपकार करवानो के. वसुराजाए कह्यु माताजी ! हुँ मिथ्या वचन केवी रीते बो. ली शकुं? सत्य वोलनारा पुरुषो पोताना प्राण जाय ने तो पण असत्य वोलता नथी, तो गुरुनु वचन अन्यथा करवू, अने जूठी सादी पुरवी, तेने वास्ते तो शुंज कहे ? गुरुपत्नीए कह्यु के क्यांतो गुरुना पुत्रनो जान वचशे, क्यांतो तमारा सत्य व्रतनो आग्रह रहेशे, वली हुं पण तने ते वखते मारा प्राणनी हत्या आपीश. गुरुपत्नीना आ प्रमाणेना वचनो सांजली लाचार थ तेणीनुं वचन अंगीकार कर्यु. गुरुपत्नी खु. शी थक्ष पोताने घेर आवी. तत्काल नारद तथा पर्वत बंने वसुराजानी सनामां आव्या. ते प्रसंगे मोटा मोटा विद्वान् पुरुषो सनामां आवी पहोंच्या, अने वसुराजा स्फटिक सिंहासन उपर बेसी सजापति थर पुरवा लाग्यो; पर्वत तथा नारदे पोतानो श्राद्यंत सर्व वृत्तांत वसुराजाने संजलाव्यो, बेवटे कडं के हे राजन् ! गुरुजीए था वंने अर्थमांथी कयो अर्थ कह्मो ते तमे सत्य कही द्यो ? सनामां बिराजेला वृद्ध ब्राह्मणोए पण कडं के हे राजन् तमे सत्य सत्य जे होय तेज कही देजो,