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जैनतत्त्वादर्श.
लाग्या के, या युगल अमारामां मोटोडे; कारण के ते हाथी उपर चढी फरेबे, नेमे तो पगे चालीये बीये, तेथी तेने न्यायाधीश बनाववामां आवे तो सारं, अर्थात् ते जे कहे ते श्रमारे मानवुं पढी ते ए तेने न्यायाधीश बनाव्यो. जे कारणथी हाथीए युगलने पोतानी उपर चडाव्यो ते कारण, तथा तेर्जना पूर्व जवोनी कथा श्रावश्यकसूत्र तथा प्रथम अनुयोगथी जावी.
न्यायाधीश युगल विमलवाहने सर्व युगलियाने कल्पवृक्षो वेहेंची प्यां. जे युगल पोताना वृद्धथी संतोष नही पामतां, बीजाना वृक्षथी फल लेवा लाग्या, तेनी साथे क्लेष थतां, ते असंतोषी युगलो ने विमलवाहन पासे लाववामां आवता हता. विमलवाहन तेजने कड़ेतो के " हा " तमे श्र शुं कर्यु ? त्यारथी विमलवाहने हाकारनी दंडनीति प्रवर्त्तावी. ते हाकार दंडनी तिथी फरी ते तेवा काम करता नहोता. पढी ते विमलवाहनना पुत्र चक्षुष्मान् थया; ते पण पोताना पितानी जेम राजा अर्थात् कुलकर थया. तेना वखतमां पण हाकारज दंड रह्यो. तेने यशस्वान् नामा पुत्र थया, यशस्वान्ने श्रमिचंद्र नामा पुत्र थया. | या वनेना समयमां थोडा अपराधवालाने हाकार दंड ने विशेष अ पराधवालाने मकार दंड, अर्थात् या काम न करयुं, या वे दंडनीति प्रवर्ती श्रमिचंद्रना पुत्र प्रश्रेणि यया प्रश्रेणिना पुत्र मरुदेव थया, अने मरुदेवना पुत्र नानि थया. या त्रण कुलकरोना समयमां हाकार, मकार, घने धिक्कार, या त्रण दंडनीति प्रवर्ती. तेमां थोडा अपराधी ने हाकार, मध्यम अपराधी ने मकार ने उत्कृष्ठ अपराधीने धिक्कार दंड करता हता. नानि कुलकरने मरुदेवी नामा जार्या हती. या नाजिकलकर इक्ष्वाकु भूमि अर्थात् विनिता नगरीनी भूमिमां विशेष काल निवास करता हता. या भूमि काश्मीर देशनी उपर हती, कारण के विनिता नगरीनी चारे बाजुए चार पर्वत इता. पूर्व दिशिमां श्रष्टापद - र्थात् कैलास गिरि, दक्षिण दिशिमां महाशैल्य, पश्चिम दिशिमां सुरशैल्य, ने उत्तर दिशिमां उदयाचल पर्वत, हता.
ते नानिकुलकरनी मरुदेवी नामनी जार्यानी कुक्षिमां श्राषाढ वद चोथनी रात्रि सर्वार्थसिद्ध देवलोकथी चवीने श्रीरीषजदेवनो जीव,