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जैनतत्त्वादर्श.
चोर, रोगी, क्रोधी, चंडाल, मदोन्मत्त, गुरुतल्पग, वैरी, खामिवंचन, लोजी, रुषि-स्त्री ने बालहत्याना करनारा एटला लोको आपएं हित करनारा होय, तोपण तेना पडोसमां वास न करवो; कारण के तेर्जनी संगतथी गुणदानि प्रमुख अनेक उपद्रव थायडे.
ज्यां हाडनुं शल्य न होय, राख न होय, ज्यां डान उगतो होय, सुंदर वर्ण, गंधवाली माटी होय, मीतुं जल होय, खोदतां धन निकले, ते जगा शुभ समजवी. वली जे भूमि शीतकालमा उष्ण स्पर्शवाली श्रने उष्णकालमां शीत स्पर्शवाली होय, ते जगा बहुज शुभ जाणवी. एक दाथमात्र भूमि प्रथम खोदी, पढी तेज माटीथी तेज खाडो पुरखो, जो माटी वधे तो श्रेष्ट भूमि जाणवी, जो माटी उठी थाय तो कनिष्ठ भूमि जाणवी तथा सो पगलां जरतां जेटलो काल लागे तेटला कालमां जे भूमिमां पाणी न सूकाय, ते उत्तम भूमि जाणवी, जो तेटला वखतमां एक श्रगल जर पाणी शोषाइ जाय तो ते मध्यम भूमि जाणवी, जो एक श्रगल उपरांत पाणी शोषाय तो अधम भूमि जाणवी; तथा पक्षांतरमां जे भूमिना खातरमां फूल नाखतां जो फूल सुकाय नहि तो ते उत्तम भूमि जाणवी, जो अर्ध सूकाय तो मध्यम भूमि जाणवी. जो सर्व सुकाइ जाय तो श्रधम भूमि जाणवी. जे भूमिमां शाल वावतां त्रण दिवसे उगे ते उत्तम, पांच दिवस पढी उगे ते मध्यम, छाने सात दिवस पढी उगे ते हीन भूमि जाणवी.
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सर्पनी वंदी पर घर बनाववामां आवे तो रोग थाय, पोली भूमिडपर घर बनाववामां आवे तो निर्धन याय, शल्य युक्त भूमि पर बनाववामां आवे तो मरण थाय. मनुष्यनुं हाड तथा केशनुं शल्य होय तो मनुष्योनी हानि थाय, खरनुं शल्य होय तो राजाप्रमुखनो जय याय, श्वाननुं दाड होय तो बालकनुं मरण थाय, बालकनुं हाड होय तो गृहस्खा - मि परदेशमां नाश पामे, गायनुं शल्य होय तो गौरुप धननी हानि थाय, मनुष्यना केश, कपाल अने जस्म होय तो मरण थाय.
प्रथम प्रहर यने बेला प्रहर शिवायना बाकीना प्रहरमां वृक्षनी अने 'ध्वजानी बाया घर उपर पडे तो दुःखदायक समजवी. अरिहंतना मंदिरनी पालना जागमां न रेहेतुं; ब्रह्मा श्रने कृष्णना मंदिरनी साथे न