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नवम परिवेद.
(४३३) व्याख्याः- गुरु अर्थात् माता, पिता, दादा, पर दादा, प्रमुख तेउनी करावेली प्रतिमा पूजवी जोश्ये, एम को कहे. वली को कहे के, पोतानी करावेली, प्रतिष्ठित करेली प्रतिमा पूजवी जोश्ये, तथा कोश कहे बे के विधियी करावेली, प्रतिष्ठा थयेली प्रतिमा पूजवी जोश्ये. आ सर्वमां यथार्थ पद तो था - ममत्वरहित सर्वप्रतिमाने विशेषरहित पूजवी जोश्ये, कारण के सर्वस्थवें तीर्थकरनो आकार देखवाथी तीर्थंकर बुछि उत्पन्न थायबे, जो एम न मानी तो जिनबिंबनी अवज्ञाथी, ते जीवने निश्चयें पुरंतसंसारमा चमणरूप दंड प्राप्त थशे.. __ वली एवो पण कुविकल्प न करवो के जे अविधिथि जिनमंदिर, जिनप्रतिमा बनेलां होय, तेने पूजवाश्री, थने तेवा अविधिमार्गनी अनुमोदनाथी लगवंतनी श्राज्ञानंगरूप दूषण लागे. तथादि कल्पनाष्ये ॥ गाथा ॥ निस्सकड मनिस्सकडे, चेये सव्वहिं थुतिन्नि ॥ वेलंच चे श्राणिय, नाउँ किकिया वावि ॥१॥ व्याख्याः-निश्राकत तेने कहीये, जे गबना प्रतिबंधथी बनेल होय, जेम के श्रा अमारा गनुं मंदिर , वीजु अनिश्राकृत, जेना उपर कोश् गहनो प्रतिबंध नथी;ा सर्व जिनमंदिरोमांत्रण थुश् कहेवी. जो सर्वजिनमंमिरोमा त्रण त्रण थुश् (स्तुति) कदेतां बहु काल लागी जाय, अने जिनमंदिर बहु होय, तो ए. केक जिनमंदिरमा एकेक थुइ कहेवी; परंतु सर्वजिनमंदिरमा विशेषरहित जक्ति करवी.
वली जिनमंदिरमा करोलीयानां जाला लागीगयां होय, तेने दूर कर वावास्ते, जेने जिनमंदिरनी सुप्रत करी होय, तेने साधु जोरथी उपदेश करे, एवी रीतें के, तमे जिनमंदिरनी नोकरी खाडो, बतां सार संचाल केम करता नथी? वली जेनी को सारसंन्नाल न करे, तेने असं विस देवकुलिका कदेबे. ते मंदिरोमां जे करोलीनां जाला होय ते दूर करवावास्ते, सेवकोने प्रेरणा करे, के तमे जिनमंदिरने मांखीनी पांखनी जेम चमक दमकवाला राखो, जो सेवक लोक न माने तो नित्रंबना करे, पली साधु पोते जयणाथी ते जालां दूर करे; कारण के जिनमंदिर, झानभंडारप्रमुखनी साधु उपेक्षा न करे एवो पाठ . पूर्वोक्त चैत्यगमन पू. जा तथा स्नानादिविधिजे वर्णन कर्यो, ते सर्व धनवान् श्रावकनी अपेक्षा.