________________
नवम परिवेद.
(४०३) थोरी, श्राबी मजीठ, बोल, बीउकाष्ट, कुंथार, चित्रक, कुंदरु प्रमुख जे जे वस्तु खावामा थनिष्ट लागे ते सर्व अणाहारिक जे. आ अणाहारी वस्तु रोगादि कष्टमां चोविहार प्रत्याख्यानमां पण खावामां आवे तो नंग थतो नथी. या प्रमाणे थाहारना नेद जाणीने प्रत्याख्यान करे. __पनी दिशाए जवू, दांतण करवं, उल उतारवी, कोगला करवा, श्रा सर्व देशस्नान करी पवित्र थर्बु जोश्ए. था कथन अनुवादरूप में; कारण के पूर्वोक्त सर्वकामो सवारमा उठी प्रायः सर्व गृहस्थ करे बे; तेमां शास्त्रोपदेशनी अपेदा नथी, कारण के व्यवहारथी खतः सिक डे, परंतु तेनो विधि शास्त्रमा कदेलो . प्रथम मलोत्सर्ग (दिशाए जवा) नो विधि श्रा प्रमाणे . ॥ यमुक्तं विवेकविलासग्रंथे ॥ मूत्रोत्सर्ग, मलोत्सर्ग मैथुनं स्नाननोजनं ॥ संध्या दिकर्म पूजा च, कुर्याऊपं च मौनवान् ॥१॥ अर्थः-मुतरवू, दिशाए जq, मैथुन करवू, स्नान, जोजन, संध्यादि कर्म, पूजा, जाप, श्रा सर्व मौनपणे करवा; तथा बने संध्या वस्त्र पेहेरीने करे दिवसे उत्तर सन्मुख मुख राखी लघुशंका करे. वली सर्व नक्षत्रोतुं तेज सूर्यथी अवरा जाय, अने सूर्यनुं मंडल अर्धबहार थावे त्यांसुधी सवारनी संध्या करे; तथा सूर्य अर्ध श्रस्त थाय, पडी बेत्रण नदात्रो ज्यां सूधी नजरे न पडे, त्यांसुधी सायंकाल कहेवाय दे. वली राखना ढगला उपर, बाणना ढगला उपर, गायोने बेसवाना स्थानमा, सर्पनी बंबी जपर, ज्यां बहुलोक पुरीपोत्सर्ग करता होय त्यां, उत्तम वृदनी नीचे, रस्ता उपरना वृक्षनी हेग्ल, रस्तामा सूर्य सन्मुख, पाणीनी 'जगामां, स्मशानमां, नदीना कांग उपर, जे जगाने स्त्री पूजती होय ते जगाउपर, इत्यादि स्थानोमा मलोत्सर्ग न करे. परंतु ज्यां बेसवाथी कोश गाल दीए नहि, मारे कुटे नही, पकडी लश् जाय नहि तेवा स्थानमा तेमज ज्यां बेसवाथी पडी जवाय नही, ज्यां जमीनमां पोलाण होय नही, मछर डांसादि त्रसजीव तथा बीजप्रमुख होय नही, एवा उचित स्थानमा मलोत्सर्ग करे, वली गामनी तथा कोश्ना घरनी समीप मलोत्सर्ग न करे. जे तरफथी पवन श्रावतो होय, तथा गामनी पूर्व दिशि तरफ पूंठ करीने मलोत्सर्ग न करे. तथा मूत्रनो वेग रोकवो नही. मूत्रनो वेग रोकवाथी नेत्रमा हानि थाय बे, अने दिशानो