________________
नवम परिजेद. (३एए) तिना, या सर्वना डीटीयां (वृंत ) करमा जाय त्यारे ते जीवरहित थयां जाणवां था कथन श्रीकल्पनाष्यवृत्तिमा जे.
श्री पंचमांगना बग शतकना पांचमा उद्देशामां सचित्त अचित्त वस्तुनुं खरूप आ प्रमाणे लखेळु बे, शाल, ब्रीहि, घलं, जव, जवजव, श्रा पांच धान्यनी जाति कोगरा, मोटा पालामां वा माला याने कोगर विशेषमा मुख ढांकीने राखे तथा लींपे, चारे बाजुथी लींपे, अने उपर मजबुत ढांकणुं राखी सील मारवाजेई बंध करे तो केटलाककाल सुधी तेमां जीव योनि रहे ? या प्रमाणे प्रश्नपुबवाश्री लगवान् कहे के हे गौतम! जघन्य तो अंतर्मुहर्त रहे, अने उत्कृष्ट तो त्रण वर्ष रहे, पडी श्रचित्त थ जाय. तथा वटाणा, मसूर, तल, मग, अडद, वाल, कलथी, चोला, तुअर, चणा इत्यादि धान्य सर्व उपर प्रमाणे जाणवू, परंतु एटलुं विशेषके, ते उत्कृष्ठथी पांच वर्ष उपरांत अचित्त थ जाय . तथा अलसी, कसुंबानी करड, कोडं, कंगणी, बंटी, राल, कोडुसक, सण, सरसव, मूलीनां बीज इत्यादि धान्यपण उपर प्रमाणे जाणवां, परंतु ज़स्कृष्ठथी सात वर्ष उपरांत अचित्त थ जाय . तथा कपासनां डोडवां उत्कृष्ठथी त्रण वर्ष उपरांत अचित्त थ जाय . आपण कल्पनाष्यनी वृत्तिमां बे. तथा चाव्या विनानो आटो (लोट ) श्रावण, जादरवा महिनामां पांच दिवस सुधी मिश्र रहे. पडी अचित्त थाय बे; आसो, कारतक मासमां चारदिनसुधी मिश्र रहे, पनी अचित थाय बे; मागसर पोस मासमां त्रण दिन सुधी मिश्र रहे डे, पनी अचित्त थाय डे; माहा, फागणमासमां पांच पहोर मिश्र रहे , तथा चैत्र, वैशाख मासमां चार पहोर मिश्र रहे , तथा ज्येष्ठ, आषाढ मासमां त्रणपहोर मिश्र रहे , उपरांत अचित्त थ जाय . जो तत्काल चाली ले तो अंतर्मुहर्तसुधी मिश्र रहे, पनी अचित्त थाय .
प्रश्नः- पीसेलो बाटो केटला दिवसनो अचित्त जोगीने तथा श्रावकने खावो योग्य ?
उत्तरः- सिझांतमां श्राटानी मर्यादानो नियम अमारा वाचवामा श्राव्यो नथी, परंतु बुद्धिमान् नर्बु जुनुं अनाज, सरस नीरस क्षेत्र, वर्षा, शीत, उष्णादि ऋतु, तेमां पण ते आटानो पंदर दिवस के मासादि का