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मखी तेनाल, ने तृष्णाए ले के चेतनया व्यवहार
अष्टम परिजेद. (३३३) त्याग करे,अने स्त्री पुरुषनो त्याग करे, अर्थात् अरस परस रतिक्रीडा काम सेवननो त्याग करे, ते अव्यब्रह्मचारी तथा व्यवहारब्रह्मचारी कहेवाय डे.
नाव मैथुनर्नु खरूप एवं के चेतनरूप पुरुष, परपरिणतिरूप विषय विलास, अने.तृष्णा, ममतारूप कुवासना, एवी निश्चय परस्त्रीने मली तेनी साथे लालन, पालन, कामविलास करवो ते. तेनुं जिनवाणीना उपदेशथी, तथा गुरुनी हितशिक्षाथी ज्ञान थयु, त्यारे जातिहीन जाणीने, तेमज भविष्यमां तेनुं सेवन महाकुःखदायक परिणामवाएं थवानु डे एम जाणीने, तथा पूर्वकालमां तेना सेवनथी अनंत जन्म मरणनां दुःख अनुजव्यां ने एम विचारीने ते विजातीय स्त्रीनो त्याग करवो ते ठीक बे, अने मारी परमजक्त, खजातीय, उत्तम, सुकुलवती स्त्री, समतारूप सुंदरी, तेनो संग करवो वास्तविक जे. वली विजाव परिणतिरूप परस्त्रीए मारी सर्व विनूति हरण करी बे, तेथी सद्गुरुनी सहायताथी हवे ते कुष्ट परिणतिरूप स्त्रीना संगनो थोडो निग्रह करूं, त्यागवानो नाव आदरुं, जेथी शुद्धखजाव घटरूप घरमा प्रवेश करूं, तथा मारा खरूपना तेजनी वृद्धि थाय एम प्रवर्तु; एवी समजण ला. वीने परपरिणति मग्नतानो त्याग करे, तेमज कर्मना उदयमा व्यापक न थाय, अने शुद्ध चेतनाना संगी थाय, ते नाव मैथुनत्यागी कदेवाय .
अव्य मैथुनना त्यागी तो गए दर्शनमा मती शके बे, परंतु नावमैथुनना त्यागी तो श्रीजिनवाणी श्रवण करवाथी, ज्यारे नेदशान घटमां प्रगट थाय , त्यारे नवपरिणतिथी सहज उदासीनरूप नाव थाय ने तेवा मैथुनना त्यागी जैनमतमांज होय .. __ स्थूल परस्त्रीगमनविरमणव्रत. ते परस्त्रीनो त्याग करवो, परपुरुषनी विवाहिता स्त्री, तथा परनी राखेली स्त्री, तेनी साथे अनाचार न सेववो, एवं जे प्रत्याख्यान, ते परदारगमन विरमण व्रत; अने पोतानी स्त्रीमां संतोष करवो एवं जे व्रत, ते खदारासंतोष व्रत .
देवांगना तथा तिर्यंचणी, तेउनी साथे कायाथी मैथुन सेवन करवानो निषेध ा व्रतमा जे. वली वर्तमान स्त्रीनो त्याग करीने, बीजी स्त्री साथे विवाह न करे; तथा दिवसें पोतानी स्त्री साथे पण मैथुन सेवन न करे, कारण के दिनसंजोगथी जे संतान उत्पत्ति थाय बे, ते