________________
( ११८ )
जैनतत्वादर्श.
पूर्वपक्ष:- जेम कृष्यादि क्रियानां दृष्ट फल कमोद प्रमुखडे, तेम दानादि, तेमज पशुहिंसादि क्रियानां दृष्टफल श्लाघा, मांसमक्षण, निर्दयता श्रादिबे, तो हवे शावास्ते दृष्ट पुण्यपापनां फल कल्पवां जोइयें ? कारके जनसमुदाय विशेषें करी दृष्ट फलमांज प्रवृत्त थायडे, खेती, वेपार प्रमुख हिंसादि क्रियामां बहु लोको प्रवर्त्ते बे ने अदृष्ट दान फलादि क्रियामां थोडा लोक प्रवर्त्तेबे. ते कारणथी कृषि हिंसादि अशुभ क्रियानां दृष्ट फल पापरूप श्रमे मानता नथी.
उत्तरपक्षः - जो श्रा तमारुं कथन वास्तविक होय, तो तो परनवमां फलना श्रावथी मरणानंतर सर्व जीव प्रयत्नविना मोक्ष प्राप्त कर - शे. तथा संसार प्रायः शून्य था जशे, संसारमां कोइपण दुःखी होशे नहि, मात्र दानादि शुभ क्रियाना करनारा, तेमज तेनां फल जोगवनारा रहेशे; परंतु तेम नथी, संसारमां दुःखी बहुज देखवामां आवेढे, अने सुखी थोडाज देखायडे, ते कारणथी साबीत याय के कृषि, वाणिज्य, हिंसादि क्रिया निबंधन श्रदृष्ट पापरूप फल दुःखी जीवोने बे, अने दानादि दृष्ट पुण्यफल सुखी जीवोने बे.
प्रश्नः - जे सुखीने ते हिंसादि क्रियाथी, छाने जे दुःखीबे ते दानादि क्रियायी एम केम न बने ?
उत्तरः- एम बनतुं नथी, कारणके हिंसादि अशुभ क्रिया करनारा बहु बे, अनेदानादि शुभ क्रिया करनारा थोडाबे, या कारण अनुमानबे. हवे कार्य अनुमान कहिये बियें. जीवोमां श्रात्मस्व समान बतां नर पशु यदि देहोमां कारणनी विचित्रताथी कार्य विचित्र देखायडे, जेमके घटनां दंड, चक्र, चीवरादि सामग्री संयुक्त कुंनकार; हवे एम पण कहेवाय के, देखाय जे माता, पिता ते या देहनां कारण बे, परंतु पुण्य पाप नी, कारण के मातापिता एकज ने बतापि पुत्रोना देहोमां विचित्रता देखायेबे, या विचित्रता, श्रदृष्ट (शुभाशुभ कर्म) विना यह शकती नथी. ते कारण जे शुभ देह बे, ते पुण्यनुं कार्य बे, घने अशुभ देहबे ते पा पनुं कार्य, या कार्यानुमान सिद्धबे. सर्वज्ञ वचन प्रमाण थी पुण्यपापनी सत्ता पण सिद्धबे. विशेष जाणवानी इछावालाए विशेषावश्यकनी टीका जोवी.
पाप, प्राणातिपात आदि अढार पापस्थानकोथी बंधायडे, अने ते
1