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चतुर्थ परिवेद. (१७ए) व्यतिरेक बनेना मलवाथी घट जात्यंतर रूप, अर्थात् मृत्तिकाथी कथं चित् नेदानेदरूप . यथा ॥ न नरः सिंहरूपत्वा, न सिंहोनररूपतः॥ शब्दविज्ञानकार्याणां, दोजात्यंतरं हि सः ॥१॥ जावार्थ:-सिंहरूप होवायी नर नथी,अने नररूप होवाथी सिंहपण नथी, तो शुंडे? १ शब्द, विज्ञान,३ कार्य, तेजेना नेद होवाथी नरसिंह, त्रीजी जातिबे.
२ रूप, रस, गंध, स्पर्श, तेजनी रूपिअव्यमा प्रवृत्ति बे, अने विशेष गुण , तथा ? संख्या, परिमाण, ३ पृथक्त्व, ४ संयोग, ५ विनाग, ६ परत्व, ७ अपरत्व, या सामान्य गुण बे, तेउनी सर्वप्रव्यमा प्रवृत्ति . तथा १ बुद्धि, सुख,३ पुःख, ४ श्ला, ५ द्वेष, ६ प्रयत्न, धर्म, न्यधर्म, ए संस्कार, था आत्माना गुण . तथा गुरुत्व पृथ्वी तथा जलमां बे, अव्यत्व पृथ्वी, जल, तेमज अग्निमां , स्नेह जलमांज , वेगनाम संस्कार तेमूर्त प्रव्योमांज , अने शब्द आकाशनो गुण . तेमां संख्यादि सामान्य गुण रूपादि पेठे अव्यखनाव होवाथी परजपाधियी गुणज नथी. वली गुण जो अव्यथी पृथक् थ जाय तो अव्यना खरूपनो नाश थर जशे. “ गुणपर्यायवत् अव्यं" आ केहेवाथी गुण अव्यथी जिन्न नथी. अध्यग्रहण करवामां गुणतुं ग्रहण थ जाय , तेज युक्त ने परंतु गुणने पृथक् पदार्थ मानवो, युक्त नथी. तथा शब्द श्राकाशनो गुण नथी, कारण के ते तो पौद्गलिक डे, अने आकाश तो अमूर्त जे. बाकी जे वैशेषिके कहेल ने ते प्रक्रियामात्र , साधन दूषणोनुं अंग नथी. ३ कर्म पण गुणनी पेठे पृथक् पदार्थ मानवो अयुक्त ने.
४ सामान्य बे प्रकारें . एक पर, बीजुं अपर. तेमां पर सामान्य महासत्ता नाम . अव्यादि त्रण पदार्थोमां व्यापि बे, अने अपर तेजव्यत्व, गुणत्व, कर्मत्वादि . तेमां महासत्ताने पृथक् पदार्थ मानवू अ. युक्त के कारण के सत्तामा जे सत् प्रत्यय , ते शुं कोई बीजी सत्ताना योगथी ? के स्वरूपथी बे? जो कहो के बीजी सत्ताना योगथी तो ते सत्तामां सत्प्रत्यय वली बीजी सत्ताना योगथी होवो जोश्य. एम करतां धनवस्था दूषण श्रावे . वली जो कहो के स्वरूपथी, सत् ने तो तो अव्यादि पण खरूपथी सत् . त्यारे हवे बकराना, गलाना स्तनोनी पेठे निष्फल सत्तानी कल्पना करवातुं शुं प्रयोजन . वली अव्यादि स