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जैनतत्त्वादर्श. पूर्वापर विरोध न होय ? कारण के अतीतादि जे जे ते विनष्ट, अनुत्पन्न होवाथी सहकारी यश् शकता नथी. 'ए तथा स्मृति गृहीतग्राहि होवाथी प्रमाण मानता नथी. " अनर्थ जन्यत्वेन" अर्थ विना होवाश्री, तेमज गृहीतग्राही होवाथी प्रमाण नथी; श्रने धारावाही ज्ञान तो गृहीतग्राही , तेने पण अप्रमाणता होवी जोश्यें. परंतु धारावाहि ज्ञानने नैयायिक तेमज वैशेषिक प्रमाण माने .अने स्मृतिने अनर्थजन्य होवाथी ज्यारे प्रमाण मानी, त्यारे श्रतीत अनागत अनुमानपण अनर्थजन्य होवाथी प्रमाण न थयां; श्रने अनुमानने शब्दनी पेठे त्रिकालविषयक माने बे, कारण के धुमाडाथी वर्तमान अग्नि अनुमेय बे, अने मेघोन्नतिथी थवानी वृष्टि, तेमज नदीनुपूर देखवायी थयेली वृष्टिर्नु अनुमान,श्रा बने अनर्थजन्य बे, तो पड़ी धारावाहि ज्ञान, श्रने अनर्थजन्य अनुमान, था बंनेने तो प्रमाण मा. नवां, अने स्मृतिने प्रमाण नहि मानवी, आ पूर्वापर विरोध डे.
१० ईश्वरतुं सर्वार्थ विषय प्रत्यक्ष ज्ञान, इंजियार्थसन्निकर्षनिरपेक्ष मानोडो ? के इंजियार्थसन्निकर्षोत्पन्न मानोबो? जो एम कहो के इंजियार्थसंन्निकर्षनिरपेक्ष मानियें लियें, तो तो " इंजियार्थसन्निकर्षोत्पन्नं ज्ञानमव्यपदेश्य मित्यत्र सूत्रे " सन्निकर्षोपादान निरर्थक थशे; कारण के ईश्वरप्रत्यक्षज्ञान सन्निकर्ष विना पण थश् शके बे, जो एम कहो के ईश्वरप्रत्यक्षज्ञान, इंजियार्थसन्निकर्षोत्पन्न मानियेंबिये, तो तो ईश्वरना मनने अणुमात्र प्रमाण होवाथी युगपत् सर्वपदार्थोनी साथे संयोग नहि थशे; त्यारे तो ईश्वर ज्यारे एक पदार्थने जाणशे, त्यारे बीजो पदार्थ विद्यमान उतां पण तेने जाणी शकशे नहि; तेथी तो श्रमारी जेम ते ईश्वरने सर्वज्ञता कदापि प्राप्त थशे नहि, कारण के सर्व पदार्थोनी साये युगपत् सन्निकर्ष तो थर शकतो नथी; जो एम कहो के सर्वपदार्थोने अनुक्रमें जाणवाथी सर्वज्ञ , तो तो दीर्घकालें सर्वपदार्थोंने जाणवाथी ईश्वरनी जेम श्रमने पण सर्वज्ञ केहेवा जोश्य, वली एक बीजी वात ए ने के, अतीत,अनागत पदार्थ जे जे ते विनष्ट, अनुत्पन्न होवाथी मननी साथे तेनो सन्निकर्ष थ शकतो नथी; अने वर्तमान पदार्थनो संयोग थाय , तथा अतीत अनागत पदार्थ तो ते अवसरे असत् बे, तेथी म