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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवां भाग १०३ पापों का मुझे त्याग है इस प्रकार भगान् ने चारित्र स्वीकार किया। (६) प्रश्न- क्या परमावधिज्ञानी चरमशरीरी होते हैं ? उत्तर-भगवती सूत्र के सातवें शतक के सात, उद्देशे में परमावधिज्ञानी को चरमशरीरी बतलाया है। परमावधिज्ञानी के लिये सूत्रकार ने 'तेणेव भवग्गहणेण सिभित्तए जाव अंतं करेत्तए' कहा है अर्थात् वह उसी भव में सिद्ध होता है यावत् कर्मों का अन्त करता है। भगवती सूत्र के अटारहवें शतक के आठवें उद्देशे में टीका में कहा है कि परमावधिज्ञानी अवश्य ही अन्तर्मुहत में केवलज्ञान प्राप्त करता है। (७) प्रश्न-किसी विषय की शंका होने पर अनुत्तर विमानवासी देव किस को पूछते हैं और कहाँ से ? उत्तर-अनुत्तरविमानवासी देव शंका उत्पन्न होने पर अपने विमान से ही यहाँ रहे हुए केवनी से पूछते हैं और केवली जो समाधान देते हैं उसे वे वहीं से जान लेते हैं। भगवती सूत्र के पाँचवें शतक चौधे उद्देशे में इस विषय में प्रश्नोत्तर हैं। भावार्थ इस प्रकार है: प्रश्न हे भगवन् ! क्या अनुत्तरोपपातिक देव वहीं रहते हुए यहाँ रहे हुए केवली के साथ मानसिक) आलाप संलाप कर सकते हैं ? उ० हाँ, कर सकते हैं। प्र० हे भगवन् ! यह किस तरह ? उ० हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही अर्थ, हेतु. प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण पूछते हैं और यहाँ रहे हुए केवली उनका उत्तर देन हैं इस प्रकार वे देवता आलाप संलाप कर सकते हैं। प्र. हे भगवन् ! केवली जो उत्तर देते हैं उसे अनुत्तरविमानवासी देव क्या वहीं रहते हुए जानते देखते हैं ? उ० हां, जानते देखते हैं। प्र० हे भगवन् ! अनुत्तरविमान के देव अपने विमान से ही केवली द्वारा दिये गये उत्तर कैसे जानते और देखते हैं १3० हे गौतम । अनन्त मनोद्रव्यवगणाएं उन देवताओं के अधिज्ञान का विषय होती हैं और सामान्य ता विशेष रूप
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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