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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
और गरीबों का भला कर सकता है एवं सुपात्र को दान दे सकता है । उसकी बुद्धि सदा शुद्ध रहती है और वह धर्म की सम्पग् आराधना कर सकता है । इसलिये धार्मिक गृहस्थ को सदा नीति पूर्वक धन उपार्जन करना चाहिये ।
(२) शिष्टाचार प्रशंसक उत्तम क्रिया वाले ज्ञानवृद्ध पुरुषों की सेवा कर उनसे विशुद्ध शिक्षा पाने वाले पुरुष शिष्ट कहलाते हैं। शिष्ट पुरुष जिसका आचरण करते हैं वही शिष्टाचार कहलाता है । लोकापवाद से डरना, दीन दुखी का उद्धार करना, उपकारी - का कृतज्ञ रहना, दाक्षिण्य भाव रखना, निन्दा न करना, सज्जनों की प्रशंसा करना, आपत्ति में न घबराना, संपत्ति में विनम्र बने रहना, मौके पर परिमित भापण करना, विवाद न करना, कुलाचार का पालन करना, अपव्यय न करना, श्रेष्ठ कार्य का आग्रह रखना, 1. प्रमाद का परिहार करना इत्यादि गुणों का शिष्ट पुरुष सेवन करते हैं । गृहस्थ को उक्त शिष्टाचार की प्रशंसा करनी चाहिये । (३) समान कुल शील वाले अन्य गोत्रीय के साथ विवाह-गृहस्थ को अपनी जाति में समान चार वाले भिन्न गोत्रीय व्यक्ति के साथ आयु, स्वास्थ्य, स्वभाव, शिक्षा, धार्मिक विचार प्रतिष्ठा, आर्थिक स्थिति आदि का विचार कर विवाह सम्वन्ध करना चाहिये | हेमचन्द्राचार्य ने विवाह का फल सन्तान प्राप्ति, मानसिक शान्ति, घर की सुव्यवस्था, कुलीनता, आचार विशुद्ध. और देवता अतिथि तथा बन्धु का सत्कार बतलाया है। उन्होंने वधू रक्षा के चार उपाय कहे हैं-घर के काम काज में लगाये रखना, उसके पास परिमित पैसा रखना, अधिक स्वतन्त्रता न देना तथा माता के उम्र की सदाचारिणी वयोवृद्ध खियों के बीच रखना ।
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(४) पाप भीरु - कई पाप कर्म ऐसे हैं जिनका बुरा नतीजा आत्मा को यहीं पर भोगना पड़ता है जैसे जुआ, परस्त्रीगमन,
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