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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
है-संसार में बहुत से लोग कामभोगों का सेवन करते हैं, उनका जो हाल होगा वह मेरा भी होगा। कामभोगों में अनुरक्त रहने के. कारण वह आत्मा यहाँ और परलोक में क्लेश प्राप्त करता है। (८) भोगों में आसक्त वह अज्ञानी जीव बस स्थावर प्राणियों के विषय में दण्ड का प्रयोग करता है। अपने और दूसरों के प्रयोजन से तथा कभी निष्प्रयोजन ही वह प्राणियों की हिसा करता है।
(8) हिंसा करने वाला, झूठ बोलने वाला, छल कपट करने वाला, दूसरों के दोप प्रगट करने वाला यह अज्ञानी जीव मदिरा मांस का भोग करता है एवं उसे श्रेष्ठ मानता है।
(१०) मन वचन कापा से मदान्ध बना हुआ और धन तथा स्त्रियों में आसक्त हुआ वह अज्ञानी दोनों प्रकार से यानी रागद्वेषमयी वाह्य और श्राभ्यन्तर प्रवृत्ति द्वारा कर्म मल संचय करता है। जैसे अलसिया मिट्टी खाता है और उसे शरीर पर भी लगाता है।
(११) इसके पश्चात् रोगों से पीड़ित हुआ वह अज्ञानी जीव मन में ग्लानि का अनुभव करता है। स्वकृत दुष्कर्मों को याद कर परलोक से डरा हुआ वह उनके लिये पश्चात्ताप करता है।
(१२) मैंने उन नरक के स्थानों के विषय में सुना है जहाँ दुःशील पुरुष मर कर उत्पन्न होते हैं। कर कर्म करने वाले अज्ञानी जीवों को वहाँ असह्य वेदना होती है।
(१३) वहाँ नरक में वह पापी जीव उपपांत जन्म से जिस प्रकार उत्पन्न होता है वह मैंने सुना है । यहाँ की स्थिति पूर्ण होने पर स्वकृत दुष्कर्मों के फल स्वरूप वहाँ जाता हुआ वह अज्ञानी जीव बहुत ही पश्चात्ताप करता है।।
(१४)जैसे कोई गाड़ीवान् जानबूझ कर सीधे मार्ग को छोड़ विषम मार्ग में जाता है और वहाँ गाड़ी की धुरी टूट जाने पर शोक करता है। • . (१५) धर्म मार्ग को छोड़ अधर्म का आचरण करने वाला वह