________________
श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवां भाग ४७ अशान्तिपूर्वक ध्येयशून्य जो मरण होता है वह अकाम मरण है। समाधि पूर्वक विशिष्ट ध्येय के लिये मरना सकाम मरण है। ये मरण किन्हें प्राप्त होते हैं और इनका क्या फल है ? इत्यादि बातों का इस अध्ययन में सविस्तर वर्णन दिया गया है। इसमें बत्तीस गाथाएं हैं। इनका भावार्थ क्रमशः नीचे दिया जाता है
(१) रागद्वेष का नाश करने वाले महात्मा दुस्तर और महाप्रवाह वाले इस संसार समुद्र को तिर जाते हैं । संसार सागर से पार पहुँचने के लिये प्रयत्नशील किसी जिज्ञासु के प्रश्न पूछने पर महाप्रज्ञाशाली तीर्थकर देव ने यह फरमाया था।
(२) मरण रूप अन्त समय के दो स्थान बतलाये गये हैंपहला सकाम मरण और दूसरा अकाम मरण ।
(३) अज्ञानी जीव बार बार अकाम मरण माते है । चारित्रशील ज्ञानी पुरुप सकाम मरण मरते हैं। उत्कर्ष प्राप्त सकाम मरण केवलज्ञानियों को एक ही बार होता है।
(४) इनमें से पहले स्थान अर्थात् अकाममरण के विषय में भगवान् महावीर ने फरमाया है कि इन्द्रिय विषयों में आसक्त अज्ञानी जीव किस प्रकार र कर्म करता है।
(५) जो काम अर्थात् शब्द और रूप में तथा भोग अर्थात् स्पर्श रस गन्ध में आसक्त है वह कट अर्थात् मिथ्या भाषण आदि का सेवन करता है। किसी से प्रेरणा किये जाने पर वह कहता है कि परलोक किसने देखा है ? शन्दादि विषय जनित आनन्द तो प्रत्यक्ष दिखाई देता है।
(६) ये काम भोग तो प्रत्यक्ष हाथ में आये हुए हैं और जो अनागत अर्थात् आगामी जन्म सम्बन्धी हैं वेआगे होने वाले हैं और अनिश्चित है। कौन जानता है परलोक है भी या नहीं ? (७) कामभोगों में श्रासन अज्ञानी जीव धृष्टता पूर्वक कहता