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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (१३) गोशीर्ष चन्दन जैसे शीतल एवं सुगन्ध वाला होता है उसी प्रकार साधु कपायों के उपशान्त होने से शीतल एवं शील की सुगन्ध से वासित होता है ।।
(१४) हवा न चलने पर जैसे जलाशय में पानी की सतह सम रहती है, ऊँची नीची नहीं होती उसी प्रकार साधु भी समभाव वाला होता है । सम्मान एवं अपमान में भी उसके विचारों में चढ़ाव उतार नहीं होता।
(१५) सम्मार्जित स्वच्छ सीसा जैसे प्रगट भाव वाला होता है, उसमें मुख, नेत्र आदि का यथावत् प्रतिविम्ब पड़ता है इसी प्रकार साधु प्रकट शुद्ध भाव वाला होता है । माया रहित होने से उसके मानसिक भाव कार्यों में यथार्थ रूप से प्रतिविम्बित होते हैं।
(१६) जैसे हाथी युद्ध में शौर्य दिखाता है। उसी प्रकार साधु अनुकूल प्रतिकूल परीपह रूप सेना के विरुद्ध आत्मशक्ति का प्रयोग करता है एवं विजय प्राप्त करता है।
(१७) धोरी वृपभ की तरह साधु जीवन पर्यन्त लिये हुए व्रत नियम एवं संयम का उत्साहपूर्वक निर्वाह करता है।
(१८) जैसे शेर महाशक्तिशाली होता है, जंगली जानवर उसे हरा नहीं सकते । इसी प्रकार आध्यात्मिक शक्तिशाली साधु भी परीपह उपसर्गों से पराभूत नहीं होता।
(१६) शरद् ऋतु का जल जैसे निर्मल होता है उसी प्रकार साधु का हृदय भी शुद्ध अर्थात् रागादि मल रहित होता है। __ (२०)भारण्ड पक्षी सदा अत्यन्त सावधान रह कर निर्वाह करता है। तनिक भी प्रमाद उसके विनाश के लिये होता है। इसी प्रकार साधु भी हर समय संयमानुष्ठान में सावधान रहता है। कभी प्रमाद का सेवन नहीं करता। - (२१) जैसें गैंडे के एक ही सींग होता है, उसी प्रकार साधु