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' श्री सैठिया जन प्रन्यमाला
त्रेपनवाँ बोल संग्रह १००८-मोहनीय कर्म के ओपन नाम
यहाँ मोहनीय कर्म से चार कषाय विवक्षित हैं। चार कषायों के पन नाम भगवती सूत्र में इस प्रकार दिये है-क्रोध के दस • नाम,मान के बारह नाम,माया के पन्द्रह नाम,लोम के सोलह नाम।
क्रोध के दस नाम ये हैं-क्रोध, कोप,रोष, दोष, अक्षमा संवलन, कलह, चांडिक्य (रौद्र आकार बनाना),भण्डन और विवाद । · मान के बारह नाम-मान, मद,दर्प, स्तम्भ, गर्व, आत्मोत्कर्ष, परपरिवाद, उत्कर्ष, अपकर्ष, उन्नत, उन्नाम और दुर्नाम ।।
माया के पन्द्रह नाम-माया, उपधि, निति, वलय, गहन, नूम, कन्क, कुरूपा, जिह्मता, किल्विप, आदरणता, गृहनता, वंचनता, प्रतिकुंचता और सातियोग।
लोम के सोलह नाम-लोभ, इच्छा, मूर्छा, कांदा, गृद्धि, तृष्णा, मिध्या, अभिध्या, आशंसना,प्रार्थना,लालपनता,कामाशा भोगाशा, जीविताशा, मरणाशा, नन्दीराग।
समवायांग ५२ में समवाय में मोहनीय कर्म के ५१ नाम कहे है-क्रोध के दस, मान के ग्यारह, माया के सत्रह और लोम के चौदह क्रोध के नाम दोनों में एक सरीखे हैं। मान के नामों में दुनाम के सिवाय शेष ग्यारह नाम वे ही हैं। माया के सत्रह नामों में उपरोक पन्द्रह नाम एवं दंभ और कूट-ये सत्रह नाम दिये हैं। लोम के उपरोक्त सोलह नामों में से आशंसना, प्रार्थना और लालपनता ये तीन नाम समवायांग में नहीं हैं । नन्दीराग को एक न । गिन कर समवायांग में नन्दी और राग दो नाम गिने हैं।
इसी ग्रन्थ के तीसरे भाग में बोल नं.७०२ में क्रोध के नाम, चौथे भाग में बोल नं० ७६० में मान के नाम एवं पांचवें भाग के