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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवाँ भाग २७३ (३) नियाग (नित्यपिएड)-आहार पानी के लिये जो गृहस्थ आमन्त्रण करे उसके घर से भिक्षा लेना ।
(४) अम्यान-घर या गाँव आदि से साधु के लिये सामने शाया हुआ आहार आदि लेना।
(५) रात्रि भोजन-रात्रि में आहार लेना, दिन में लेकर रात को खांना इत्यादि रूप रात्रि भोजन का सेवन करना।
(६) स्नान-देश स्नान और सर्व स्नान करना। (७)गन्ध-चन्दनकपुरादि सुगन्धित वस्तुओं का सेवन करना। (८) मान्य-पुष्पमाला का सेवन करना । (8) वीजन-पंखे आदि से हवा लेना। (१०) सन्निधि-घृत गुड़ आदि वस्तुओं का संचय करना । (११) गृहिमात्र-गृहस्थ के वर्तनों में भोजन करना । (१२ राजपिएड-राजा के लिये तैयार किया गया आहार लेना।
(१३) किमिच्छक-'तुम को क्या चाहिये ?' इस प्रकार याचक से पूछ कर जहाँ उसके इच्छानुसार दान दिया जाता है ऐसी दानशाला आदि का आहार लेना।
(१४) संबाधन-अस्थि, मांस, त्वचा और रोम के लिये सुखकारी मर्दन अर्थात् हाथ पैर श्रादि अवयवों को दबाना ।
(१५) दन्त प्रधावन-अंगुली से दांत साफ करना । (१६) संप्रश्न-गृहस्थ से कुगल आदि रूप सावध प्रश्न पूछना । (१७) देह प्रलोकन-दर्पण आदि में अपना शरीर देखना । (१८) अष्टापद नालिका-नाली से पाशे फेंक कर अथवा और प्रकार से जुया खेलना (१६) छत्रधारण-स्वयं छत्र धारण करना या कराना । ।
(२०) चिकित्सा-चिकित्सा अर्थात् रोग का इलाज करना। दिन कन्पी साधुओं के लिये रोग होने पर उसकी प्रतिक्रिया के