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श्री सेठिया जैन ग्रन्पमाला
mmmmmmmmmmmmmminimirm के भेद से भेद होते हैं।जलचर, स्थलचर, खेचर, उरपरिसर्प
और भुजपरिसर्प के भेद से तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय के पाँच भेद हैं। संज्ञी अमज्ञी के भेद से इन पाँच के दस भेद होते हैं । ये दस पर्याप्त
और दस अपर्याप्त इस प्रकार निर्यश्च पञ्चेन्द्रिय के कुल बीस भेद होते हैं। इस प्रकार स्थावर के वाईस, विकलेन्द्रिय के : और तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय के बीस-कुल मिला कर विर्यश्च के ४८ भेद होते हैं।
इसी ग्रन्थ के तीसरे भाग में बोल नं० ६६३ (नव तन्य) में जीव के ५६३ भेदों में नियंञ्च के अड़तालीस भेद गिनाये गये हैं।
(पन्नत्रणा पहला पद सूत्र १० से ३५)
१००२-ध्यान के अड़तालीस भेद
श्राध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान के भेद से ध्यान के चार प्रकार है । आध्यान के चार प्रकार एवं चार लक्षण (लिग) हैं। रौद्रध्यान के भी चार प्रकार और चार लक्षण हैं। इस प्रकार आर्त, रौद्र के प्रत्येक के आठ आठ और दोनों के सोलह भेद हुए ।धर्मध्यान के चार प्रकार, चार लक्षण, चार बालस्बन और चार भावना इस प्रकार सोलह भेद हैं। धर्मध्यान की तरह शुक्ल ध्यान के भी चार प्रकार, चार लक्षण, चार मालम्बन
और चार भावना इस प्रकार सोलह मेद हैं । इस प्रकार चार ध्यान के कुल अड़तालीस भेद होते हैं।
ध्यान की व्याख्या, ध्यान के प्रकार, ध्यान के लक्षण (लिंग), ध्यान के नानम्वन और ध्यान की भावना इन सभी का विराद वर्णन इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग में बोल नं. २१५ से २२८ तक में तथा तीरारे भाग में बोल नं० ५६३ (नौ तत्व-प्राभ्यन्तर तप) में दिया गया है। (औषपातिक सत्र २० श्राभ्यन्तर तप अधिकार)