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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला - दस पइएणा (प्रकीर्णक)- (१) चउसरण पइएण गाथा ६३ (२) आउर पञ्चक्खाण गाथा ८४ (३) महापचक्खाण गाथा १४२ (४)भच परिगणा गाथा १७२ (५ तन्दुल वेयालिय गा०४.० (६) संथारग पइएणय गाथा १२३ (७) गच्छाचार पइएणय गाथा १३७ (८) गणिविज्जापइएणयगाथा १०० (९) देविंद थव पइएणयगाथा ३०७ (१०) मरण समाहि पइएणय% गाथा ६६३ - इसी ग्रन्थ के तीसरे भाग में वोल नं० ६८६ में दस पदण्णा का संक्षिप्त विषय वर्णन दिया गया है। • नोट-छेद सूत्रों में कहीं जीतकन्प के बदले पंचकल्प ११३३ माना गया है। मूल स्त्रों में ओनियुक्ति के बदले कहीं पिण्डनियुक्ति मानी जाती है। कई प्राचार्यों के मतानुसार मूलसूत्र चार ही हैं। उनके मतानुसार नन्दी और अनुयोगद्वार मूलसूत्र में नहीं हैं किन्तु ये दोनों चूलिका ग्रन्थ हैं। आगमोदयसमिति द्वाग प्रकाशित 'चतुःशरणादिमरणसमाध्यन्तं प्रकीर्णकदशकं' में ऊपर लिखे दश प्रकीर्णक प्रकाशित हुए हैं। किन्तु अन्यत्र दश प्रकीर्णक के नाम में गच्छाचारपइएणय का नाम नहीं मिलता। वहाँ इसके बदले 'चद विज्जग पइएणय' दिया गया है। कहीं कहीं मरणसमाधि प्रकीर्णक भी दश प्रकीर्णकों में नहीं दिया गया है
और उसके बदले वीरस्तवप्रकीर्णक गिना गया है। ऊपर जोश्लोक संख्या दी है वह भी सब जगह एकसी नहीं मिलती,कहीं ज्यादा और कहीं कम देखने में आती है। . (जैनग्रन्थावली) (अभिधानगजेन्द्रयोष प्रथम भाग प्रस्तावना पृष्ठ ३१-३५)
* श्रागमोदय समिति द्वारा प्रकाशित 'चतुःशरणादिमरणसमाध्यन्तं प्रकीर्णकदशक में तन्दुल वेयालिय का ग्रन्थ-प्रमाण सूत्र १६ गाथा १३८ है और गरिणविजापइएणय में गाथा ८२ हैं। अभिधानराजेन्द्र 'कोष प्रथम भाग की प्रस्तावना में देविदथव पइएणय में गाथा २०० और मरणसमाहिपहरणय में गाथा ७०० होना बतलाया है।