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श्री जैन सिद्धान्त बोल संमह, सातवा भाग २६१ सूत्रों को जो विशिष्ट स्थान प्राप्त है, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में वही स्थान पैंतालीस आगमों को प्राप्त है । ग्यारह अंग, बारह उपांग-ये तेईस आगम दोनों सम्प्रदाय में एकरूप से प्रामाणिक हैं । चार छेदसूत्र, चार मूलसूत्र और आवश्यक-ये नौ सूत्र मिलाकर स्थानकवासी सम्प्रदाय में वत्तीस सूत्र मान्य हैं । मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में छ: छेदसूत्र, छा मूलसूत्र और दस पहराणा ये बाईस सूत्र मिलाकर पैंतालीस आगम गिने जाते हैं। बत्तीस सूत्रों के नाम, अंग; उपांग और मूलसूत्रों की श्लोक संख्या के साथ इसी ग्रन्थ में बोल नं० ६६६ में दिये जा चुके हैं। अतएव अंग उपांग को यहाँ न दोहरा कर शेष बाईस आगमों के नाम श्लोक प्रमाण के साथ यहाँ दिये जाते हैं।
छः छेदसूत्र--(१) निशीथसूत्र ८१५ (२) महानिशीथस्त्र ४५४८ (३) बृहत्कल्पसूत्र ४७३ (8) व्यवहार सूत्र ६०० (५) दशाश्रुतस्कन्ध * ८६० (६) जीतकल्प १०८। __ छः मूल सूत्र--(१) आवश्यक सूत्र १२५ (२) उचराध्ययन सूत्र २००० (३) अोपनियुक्ति १३५५, मूलगाथा ११६४ (४) दशकालिक ७०० (५) नन्दी सूत्र ७०० (६) भनुयोग द्वार-२००५
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दशाश्रुतस्कन्ध का आठवां अध्ययन कल्पसूत्र माना जाता है। इसकी श्लोक संख्या १२१६ है । कल्पसूत्र को श्लोक संख्या साथ में गिनने से दशाश्रुतस्कन्ध की श्लोक संख्या २१०६ हो जाती है। अमिधानराजेन्द्रकोप प्रथम भाग की प्रस्तावना में दशाश्रुतस्कन्ध की श्लोक संख्या १८३५ दी है।
x आगमोदय समिति से प्रकाशित अनुयोग द्वार सूत्र में गाथा १६०४ अनुष्ट प् प्रन्याम २००५ बतलाया है। अभिधानराजेन्द्र कोप प्रथम भाग की प्रस्तवना में इस सूत्र की श्लोक संख्या १६०० और जैन मन्यावली में १८६६ दी है।